SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 219
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १९४ आप्तवाणी-६ इतना तू नक्की कर । फिर वैसा हुआ या नहीं हुआ वह हमें नहीं देखना है। कब तक यह नाटक देखने बैठे रहें? इसका अंत ही कब आएगा? हमें तो आगे चलने लगना है । शायद समभाव से निकाल नहीं भी हो । होली नहीं जली है तो आगे जाकर जलाएँगे। इस तरह उछलकूद करने से थोड़े ही जलेगी? इसका कब अंत आएगा? आप दियासलाई जलाना, और कुछ जलाना, बाद में आपको इससे क्या काम? छोड़ो इसे और आगे चलो। प्रश्नकर्ता : यदि प्रतिक्रमण हो पाएँ, तो वह धर्मध्यान में गया या शुक्लध्यान में गया? दादाश्री : नहीं, वह धर्मध्यान में नहीं जाता और शुक्लध्यान में भी नहीं जाता। यह प्रतिक्रमण, कोई ध्यान नहीं है । प्रतिक्रमण आपको चोखा (खरा, अच्छा, शुद्ध, साफ) बनाते हैं । वास्तव में आत्मा प्राप्त करने के बाद प्रतिक्रमण करने की ज़रूरत ही नहीं है, परंतु यह तो 'अक्रम विज्ञान' है। आपको रास्ते चलते आत्मा प्राप्त हो गया है। इसलिए पिछले दोषों को धोने के लिए प्रतिक्रमण करने पड़ते हैं। इतने सारे दोषों के बीच यदि प्रतिक्रमण नहीं करोगे तो वे दोष खूब उछलकूद करेंगे! ये कपड़े बिगड़ जाएँ, तो उन्हें धोने तो पड़ेगे ही न? और क्रमिक मार्ग में तो कपड़े चोखे करने के बाद आत्मा प्राप्त होता है । उसमें उन्हें दाग़ ही नहीं पड़नेवाला न? अक्रम मार्ग से एकावतारी प्रश्नकर्ता : प्रतिक्रमण करेंगे तो नया चार्ज नहीं होगा? दादाश्री : आत्मा खुद कर्ता बने तभी कर्म बंधेंगे, वर्ना इस ज्ञान में तो प्रतिक्रमण होते ही नहीं । परंतु यह तो चौथी कक्षावाले को ग्रेज्युएट बनाते हैं, तो फिर बीच की कक्षाओं का क्या होगा? इसलिए इतना प्रतिक्रमण हमने बीच में रखा है। इस ‘अक्रम ज्ञान' को प्राप्त करने के बाद एक या दो जन्मों में हल आ जाए, ऐसा है। अब जन्म बाकी रहना या नहीं रहना, वह ध्यान पर आधारित
SR No.030017
Book TitleAptavani Shreni 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy