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________________ १९२ आप्तवाणी-६ प्रश्नकर्ता : इसमें कईबार क्या होता है कि सामनेवाले व्यक्ति को दुःख होता है और उसके मन का समाधान नहीं होता न! दादाश्री : समाधान तो शायद एक वर्ष तक भी नहीं हो, तो उसके लिए हम क्या कह सकते हैं? अपने मन में ऐसा भाव रखना कि सामनेवाले का समाधान हो जाए, ऐसी वाणी निकलनी चाहिए। वाणी यदि उल्टी निकली हो, तो उसका प्रतिक्रमण करना चाहिए। वर्ना इस संसार का तो अंत ही नहीं आएगा। ये तो बल्कि हमें घसीट ले जाएंगे। सामनेवाला तालाब में गिर गया होगा तो वह तुझे भी उसमें ले जाएगा! हमें अपनी सेफसाइड रखकर काम लेना चाहिए सारा। अब इस संसार में गहरे उतरने जैसा है ही नहीं। यह तो संसार है! जहाँ से काटो वहाँ से अंधेरे और सिर्फ अंधेरे की ही स्लाइस निकलेगी! इस प्याज़ को काटें तो उसकी सभी स्लाइस प्याज़ की ही होंगी न? प्रतिक्रमण करने पर भी किसी को समाधान नहीं हो तो अगले जन्म में चुकेगा, परंतु अभी तो हमें अपना कर लेना है। सामनेवाले का सुधारते हुए अपना नहीं बिगड़े, सब से पहले इसका ध्यान रखो! सब अपना-अपना सँभालो! प्रश्नकर्ता : संसार व्यवहार करते हुए शुद्ध आत्महेतु को किस तरह सँभालकर रखें? दादाश्री : वह सँभला हुआ ही है। तुझे सँभालने की ज़रूरत नहीं है। 'तू' 'तेरी' जात को सँभाल! 'चंदूभाई' खुद की जात को सँभालेंगे! प्रश्नकर्ता : ऐसी जागृति हो जाने के बाद वह फिर जाएगी नहीं न? दादाश्री : नहीं, वह फिर जाएगी नहीं, परंतु यह काल विचित्र है। धूल उड़ाए न, तो भी जागृति कम हो जाए ऐसा है और साथ-साथ यह 'अक्रम विज्ञान' है, यानी कि कर्मों को खपाए बिना मिला हुआ विज्ञान है। इन कर्मों को खपाते हुए आप पर यह धूल उड़ेगी। मुझे तो परेशानी नहीं होती, क्योंकि मेरे बहुत कर्म बाकी नहीं रहे। अपना यह 'अक्रम विज्ञान' तो सभी कर्मों को खत्म कर दे ऐसा है, परंतु अपनी तैयारी चाहिए।
SR No.030017
Book TitleAptavani Shreni 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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