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________________ १८२ आप्तवाणी-६ खाने-पीने के आकर्षणों में हर्ज नहीं है। आम खाना हो तो खाना। जलेबी, लड्डू खाना। उसमें सामने कोई दावा करनेवाला नहीं है न? 'वन साइडेड' में हर्ज नहीं है। यह 'टू साइडेड' होगा तो ज़िम्मेदारी रहेगी। आप कहोगे कि मुझे अब नहीं चाहिए, तो वह कहेगी कि मुझे चाहिए। आप कहो कि मुझे माथेरान नहीं जाना है, तो वह कहेगी कि मुझे माथेरान जाना है। इससे तो उपाधि हो जाएगी। अपनी स्वतंत्रता खो जाती है। इसलिए सावधान रहना! यह बहुत समझने जैसी चीज़ है। इसे सूक्ष्मता से समझकर रखो तो काम निकल जाए! प्रश्नकर्ता : यह पिक्चर, नाटक, साड़ी, घर, फर्निचर आदि का जो मोह है, उसमें हर्ज नहीं है न? दादाश्री : उसमें कुछ नहीं। बहुत हुआ तो उसके लिए आपको मार पड़ेगी। 'इस' (आत्म) सुख को आने नहीं देगा। परंतु ये सब सामने दावा नहीं करेंगे न? और विषयवाला तो 'क्लेम' करता है, इसलिए सावधान रहो। 'वाह-वाह' का 'भोजन' प्रश्नकर्ता : मैं जो दान देता हूँ उसमें मेरा भाव धर्म का, अच्छे काम का होता है। उसमें लोग वाह-वाह करें तो वह पूरा खत्म नहीं हो जाता? दादाश्री : इसमें बड़ी रकम का उपयोग हो, तो उसका पता चल जाता है और उसकी वाह-वाह की जाती है। और ऐसी रकम भी दान में जाती है कि जिसे कोई जानता नहीं और वाह-वाह नहीं करता, तो उसका लाभ रहता है! हमें उसकी सिरदर्दी में पड़ने जैसा नहीं है। हमारे मन में ऐसा भाव नहीं है कि लोग 'भोजन' करवाएँ! इतना ही भाव होना चाहिए! जगत् तो महावीर की भी वाह-वाह करता था! परंतु उसे वे खुद' स्वीकारते नहीं थे न? इन दादा की भी लोग वाह-वाह करते हैं, परंतु हम उसे स्वीकारते नहीं और ये भूखे लोग तुरंत ही स्वीकर कर लेते हैं। दान का पता चले बिना रहता ही नहीं न? लोग तो वाह-वाह किए बगैर रहेंगे नहीं,
SR No.030017
Book TitleAptavani Shreni 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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