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________________ १८० आप्तवाणी-६ . देखने में परेशानी नहीं है, भाव की परेशानी है। आपको भोगने का भाव उत्पन्न हुआ कि परेशानी हुई। देखने में, सुगंध लेने में कोई हर्ज नहीं है। संसार में 'खाओ, पीओ, सबकुछ करो', परंतु हमें उस पर भाव उत्पन्न नहीं होना चाहिए। इसलिए कृपालुदेव ने कहा है कि, 'देखत भूली टले, तो सर्व दुःखों का क्षय हो जाएगा।' देखे और भूल जाए, उसके लिए यह अपना 'ज्ञान' दिया है। बाद में देखत भूली बंद हो जाती है! हम तो सामनेवाले व्यक्ति में 'शुद्धात्मा' ही देखें, फिर हमें दूसरा भाव क्यों उत्पन्न होगा? नहीं तो मनुष्यों को तो कुत्ते पर भी राग हो जाता है, बहुत अधिक सुंदर हो तो उस पर भी राग हो जाता है। हम शुद्धात्मा देखेंगे तो राग होगा? यानी हमें शुद्धात्मा ही देखने है। यह देखत भूली टले ऐसी है नहीं और यदि टल जाए तो सब दुःखों का क्षय हो जाए। यदि दिव्यचक्षु हों तो देखत भूली टल सकती है, नहीं तो किस तरह टल सकती है? प्रश्नकर्ता : ‘देखत भूली' टल जाए तो क्या होगा? दादाश्री : ‘देखत भूली' टले तो सर्व दु:खों का क्षय होगा, मोक्ष होगा। प्रश्नकर्ता : उसका अर्थ यह कि राग भी नहीं होना चाहिए और भूल जाना चाहिए? दादाश्री : अपना यह ज्ञान ऐसा है न कि राग हो, ऐसा तो है ही नहीं, परंतु आकर्षण हो उस घड़ी उसके शुद्धात्मा देखो तो आकर्षण नहीं होगा। 'देखत भूली' अर्थात् देखे और भूल कर बैठे! देखा नहीं हो तब तक भूल नहीं होती। जब तक आप कमरे में बैठे रहो, तब तक कुछ नहीं होता, परंतु विवाह समारोह में गए और देखा कि फिर भूलें होती हैं वापस। वहाँ आप शुद्धात्मा देखते रहोगे, तो दूसरा कोई भाव उत्पन्न नहीं होगा और भाव उत्पन्न हो गया हो, उसके पूर्वकर्म के धक्के से, तो उसका प्रतिक्रमण कर देना, यही उपाय है। यहाँ घर में बैठे थे, तब तक मन में कुछ भी खराब विचार नहीं आ रहे थे और कहीं विवाह में गए कि विषय के विचार
SR No.030017
Book TitleAptavani Shreni 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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