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________________ आप्तवाणी-६ १६१ बहुओं से पूछे तब कहेंगी कि, 'मेरी सास खराब है!' अरे, ऐसा कैसे हो सकता है? सभी बहुएँ, सभी सासें खराब हैं? ये जानवर भी कुछ हद तक के दुःखों को रिस्पॉन्स नहीं देते और मनुष्य रिस्पोन्स दे देते हैं, इतनी अधिक फूलिशनेस है! इन लोगों का दृष्टिबिंदु १०० प्रतिशत गलत है। प्रश्नकर्ता : सभी १०० प्रतिशत गलत हैं, ऐसा कैसे कह सकते हैं? दादाश्री : खुली आँखों से अंधे हैं। खुली आँखों से अंधे यानी खुद के हिताहित का भान नहीं है। मैं क्या बोलूँ तो हित, क्या करूँ तो हित, और मैं क्या जानूँ तो हित, वह मालूम ही नहीं है। हर किसी चीज़ में नकल करने में शूरवीर हो गए हैं! सबकुछ बदल गया है। अपने हिन्दुस्तान के लोग तो किसी की नकल करते ही नहीं थे। असल में तो हमारी नकल पूरे जगत् ने की है। यह मॉडर्न जमाना आया है, उससे मुझे दिक्कत नहीं है। मैं समझता हूँ कि यह युग है, तो यह युग इस तरह से चलता ही रहेगा। मैं युग से दूर नहीं रहता, परंतु यह हित किया या अहित किया, वह मैं समझता हूँ। इन लोगों ने संपूर्ण अहित किया है। ___मुझे भले ही कितना भी बुख़ार आए लेकिन घरवालों ने किसीने कभी भी जाना नहीं। उसमें क्या बताना? ये लोग बुख़ारवाले नहीं हैं? इन्हें क्या बताना? ये तो फिर भूल जाएँगे बेचारे! 'मैं तो अनंत शक्तिवाला हूँ' मुझे भला इन लोगों को क्या बताना? ये लोग तो 'बुख़ार है, बुख़ार है' करके फिर थर्मामीटर लाकर लगाते हैं ! १०० डिग्री, १०१ डिग्री, १०२ डिग्री ऐसे गिनते रहते हैं! अरे, यह तो बुख़ार पता लगाने का साधन है। साध्य वस्तु नहीं! मुझे दुःख है ऐसा कहते हो? दुःख तो था 'रिलेटिव' में, वह 'रियल' में नहीं था। वह आरोपित था। जहाँ पर आप नहीं हो, वहाँ पर दु:ख माना गया है, 'रोंग बिलीफ़' से! २५ प्रतिशत था, उसे आपने कहा कि 'मुझे यह दुःख पड़ा है' ऐसा बोले, कि वह १०० प्रतिशत हो गया!
SR No.030017
Book TitleAptavani Shreni 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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