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________________ आप्तवाणी-६ १४३ जाने देंगे, पान देंगे तो भी, कुछ नहीं तो लौंग का दाना देंगे तो भी जाने देंगे। लोग आशा रखते हैं कि कुछ मिलेगा। लोग आशा नहीं रखेंगे तो आप मेहरबान कैसे? मोक्ष में जानेवाले मेहरबान कहलाते हैं। तो मेहरबानी दिखाते-दिखाते हमें जाना है। प्रश्नकर्ता : लोगों को आशा रहती है, परंतु हमें आशा रखने की क्या ज़रूरत? दादाश्री : हमें आशा नहीं रखनी है। यह तो उन्हें पान-सुपारी या कुछ भी देकर चलने लगना है। वर्ना ये लोग तो उल्टा बोलकर रोकेंगे। इसीलिए हमें अटा-पटाकर काम निकाल लेना है। लोग ऐसे ही मोक्ष में नहीं जाने देंगे। लोग तो कहेंगे कि, 'यहाँ क्या दुःख है कि वहाँ चले? यहाँ हमारे साथ मज़े करो न?' प्रश्नकर्ता : परंतु हम लोगों का सुनें तब न? दादाश्री : सुनेंगे नहीं, तब भी वे उल्टा करेंगे। उनके लिए चारों दिशाएँ खुली हैं और आपकी एक ही दिशा खुली है। इसलिए उन्हें क्या? वे उल्टा कर सकते हैं और आपको उल्टा नहीं करना है। सभी को राजी रखना है। राज़ी करके चलते बनना है। ऐसे आपके सामने ताककर देख रहा हो, तब उसे कैसे हो साहब?' कहा, तो वह जाने देगा और ताककर देख रहा हो और आप कुछ नहीं बोले, तब वह मन में कहेगा कि यह तो बहुत अकड़वाला है! फिर वह हंगामा करेगा! प्रश्नकर्ता : हम सामनेवाले को राजी करने जाएँ तो अपने में राग नहीं आ जाएगा? दादाश्री : उस तरह से राजी नहीं करना है। इस पुलिसवाले को किस तरह राज़ी रखते हो? पुलिसवाले के प्रति राग होता है आपको? प्रश्नकर्ता : नहीं। दादाश्री : राजी। वह भी सबको राज़ी रखने की ज़रूरत नहीं है।
SR No.030017
Book TitleAptavani Shreni 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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