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________________ [१९] दुःख देकर मोक्ष में नहीं जा सकते प्रश्नकर्ता : मनुष्य होने के नाते में हमारा धर्म क्या है? दादाश्री : किस तरह इस जगत में अपने मन-वचन-काया लोगों के काम में आएँ, वही अपना धर्म है। लोगों के कुछ काम करें, वाणी से किसी को अच्छी बात समझाएँ। बुद्धि से समझाएँ, किसी को दुःख न हो वैसा अपना आचरण रखें, वह अपना धर्म है। किसी जीव को दुःख नहीं हो, उसमें यदि सभी जीवों के लिए नहीं हो सके तो सिर्फ मनुष्यों के लिए ही ऐसा प्रण करना चाहिए। और यदि मनुष्यों के लिए ऐसा प्रण किया हुआ हो तो सभी जीवों के लिए प्रण करना चाहिए कि इस मनवचन-काया से किसी जीव को दुःख न हो। इतना ही धर्म समझना है! यह तो शादी करके जाती है, तब सास उसे दुःख देती है और वह सास को दुःख देती है। फिर नर्कगति बाँधते हैं। सास भी समझ जाती है कि बेटे को खो देना हो तो शादी करवाओ! आपके सब अरमान पूरे हो चुके हैं क्या? प्रश्नकर्ता : आपका ज्ञान लेने के बाद ऐसा रहता है कि जैसे गंगा का पवित्र झरना बह जाता है, वैसे ही हमें भी बह जाना है। दादाश्री : हाँ, बह जाना। किसी को भी असर नहीं हो, किसी को भी दुःख नहीं हो, उस तरह से। किसी को भी दुःख देकर हम मोक्ष में जा सकें, ऐसा नहीं हो सकता। हमसे किसी को दुःख हुआ तो हम जा रहे होंगे तो वहाँ से वह रस्सी डालकर पकड़ेगा कि खड़े रहो। और यदि हम सभी को सुख देंगे तो सभी जाने देंगे। चाय-पानी करवाएँगे तो भी
SR No.030017
Book TitleAptavani Shreni 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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