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________________ आप्तवाणी-६ १३७ प्रकृति पर कंट्रोल कौन करता है? प्रश्नकर्ता : प्रकृति पर कंट्रोल नहीं रहता। बाकी शुद्धात्माभाव ठीक तरह से रहता है। दादाश्री : कंट्रोल करने का काम तो पुलिसवाले को सौंप दो! प्रकृति पर कंट्रोल नहीं करना है। कंट्रोल करना शुभाशुभ मार्ग में होता है, आपकी प्रकृति पर कंट्रोल कौन लाएगा अब? आप मालिक नहीं हो। आप अब 'चंदूभाई' नहीं हो और जो कर रहा है, वह सब 'व्यवस्थित' कर रहा है। अब आप उसे कंट्रोल किस तरह करोगे? प्रश्नकर्ता : जो दोष दिखते हैं, वे जाएँगे न? दादाश्री : जो दिखने लगे, वे तो चले ही गए समझो न! जगत् को खुद के दोष दिखते ही नहीं, औरों के दोष दिखते हैं। आपको खुद के दोष दिखे न? प्रश्नकर्ता : खुद के दोष दिखते हैं, परंतु वे टाले नहीं जा सकते। दादाश्री : नहीं ऐसा कुछ मत करना। ऐसा हमें नहीं करना है। यह विज्ञान है। यह तो 'चंदूभाई' क्या कर रहे हैं, वह आपको देखते रहना है। बस, इतना ही आपको करना है। आपका और कोई काम ही नहीं है। चंदूभाई के आप ऊपरी हो। चंदूभाई तो 'व्यवस्थित' के ताबे में है। 'व्यवस्थित' प्रेरणा देता है और चंदूभाई लट्ट की तरह घूमता है! और चंदूभाई की बहुत बड़ी भूल हो तब आपको कहना है कि 'चंदूभाई! ऐसा करोगे तो नहीं पुसाएगा।' इतना आपको कहना है! प्रकृति का सताना प्रश्नकर्ता : मोक्ष अनुभव में आता है, परंतु प्रकृति अपना स्वभाव नहीं छोड़ती। उससे ऊब जाते हैं। दादाश्री : प्रकृति अपना स्वभाव छोड़ेगी ही नहीं न? घर के सामने सरकार चारों तरफ गटर खोल दे तो? गटर अपना गुण बताएगा या नहीं?
SR No.030017
Book TitleAptavani Shreni 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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