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________________ आप्तवाणी-६ ९९ प्रश्नकर्ता : सभी घर्षणों का कारण यही है न कि एक 'लेयर' से दूसरे 'लेयर' (मनुष्यों के विकास के स्तर ) का अंतर बहुत अधिक है? दादाश्री : घर्षण, वह प्रगति है ! जितनी मोथापच्ची होती है, घर्षण होता है, उतना ही आगे बढ़ने का रास्ता मिलता है । घर्षण नहीं होगा तो वहीं के वहीं रहोगे। लोग घर्षण ढूँढ़ते हैं । प्रश्नकर्ता : घर्षण प्रगति के लिए है, ऐसा करके ढूँढे तो प्रगति होगी? दादाश्री : परंतु वे समझकर नहीं ढूँढ़ते ! भगवान कहीं आगे नहीं ले जा रहे हैं, घर्षण आगे ले जाता है । घर्षण कुछ हद तक आगे ला सकता है, फिर ज्ञानी मिलें तभी काम होता है । घर्षण तो कुदरती रूप से होता है। नदी में पत्थर इधर से उधर घिस - घिसकर गोल होता है, उस तरह । प्रश्नकर्ता : घर्षण और संघर्षण में क्या फर्क है? दादाश्री : जिनमें जीव नहीं हो, वे सब टकराएँ, तो वह घर्षण कहलाता हैं और जीववाले टकराएँ, तब संघर्षण होता है। प्रश्नकर्ता : संघर्षण से आत्मशक्ति रुंध जाती है न? दादाश्री : हाँ, सही बात है। संघर्ष हो उसमें हर्ज नहीं है। वह भाव निकाल देने को कहता हूँ कि 'हमें संघर्ष करना है'। 'हममें' संघर्ष करने का भाव नहीं होना चाहिए, फिर भले ही 'चंदूभाई' संघर्ष करे । भाव रुंध जाएँ ऐसा हमें नहीं रहना चाहिए ! देह का टकराव हो जाए और चोट लगी हो तो इलाज करवाने से ठीक हो जाता है। परंतु घर्षण और संघर्षण से मन में जो दाग़ पड़ गए हों, बुद्धि पर दाग़ पड़ गए हों तो उन्हें कौन निकालेगा ? हज़ारों जन्मों तक भी नहीं जाएँगे। प्रश्नकर्ता : अत्यधिक घर्षण आए तो जड़ता आ जाती है न? दादाश्री : जड़ता तो आ जाती है परंतु शक्तियाँ भी खत्म हो जाती
SR No.030017
Book TitleAptavani Shreni 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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