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________________ ६६ आप्तवाणी-५ 'परमात्मा हो', ऐसी शक्ति उत्पन्न हुई है या नहीं? प्रश्नकर्ता : हाँ। दादाश्री : फिर क्या हर्ज है? जिसे थोड़ी शक्ति उत्पन्न हो गई उसे सर्व शक्ति है, वह पक्का हो गया। आपका कोई अपमान करे तो परिणाम बदलेंगे नहीं, तब जानो कि 'ओहोहो! इतनी सारी शक्ति!!' वह तो अभी थोड़ी ही निकली है। अभी तो और निकलेगी। अनंत शक्तियों का धीरेधीरे अनुभव होगा! ये 'ए. एम. पटेल', ये व्यक्ति ही हैं न? आपके जैसे नहीं हैं ये? मनुष्य को सबकुछ होता है। क्या नहीं होता? परन्तु हम तो दु:ख के आने से पहले ही आधार दे देते हैं, 'हम हैं न फिर आपको क्या हर्ज है?' हम तो पड़ोसी के पड़ोसी को भी कह देते हैं कि 'हम हैं न आपके साथ!' जहाँ भगवान हैं, वहाँ क्या कमी रहेगी? आप जुदापन से बोलो तो सही। क्षत्रियों की तरह हिम्मत रखनी चाहिए। अभी तक आप निराधार थे। शास्त्रकारों ने उसे अनाथ कहा है। वही आप अब सनाथ हो गए हैं। अब आप इस तरह आधार मत देना कि 'मुझे हुआ।' ऐसे आधार दोगे तो वह दुःख खत्म नहीं होगा। मेरा सिर दुःखा ऐसा आधार आप दोगे तो वह वस्तु गिर जाएगी या रहेगी। प्रश्नकर्ता : रहेगी। दादाश्री : आधार दो तो रहेगी। पूरा साइन्स ही है। उसका उपयोग करना आ गया तो काम हो जाएगा। थोड़ा भी चूकोगे तो उसका असर होगा, और कुछ भी नुकसान नहीं होगा, मगर आपको असर भुगतना पड़ेगा। प्रश्नकर्ता : ऐसे भाव से, अशाताभाव से निर्जरा (आत्मप्रदेश में से कर्मों का अलग होना)होगी न? दादाश्री : वह निर्जरा होने के लिए ही आया है, परन्तु ऐसा है न कि उतना हमारा सुख आना बंद हो गया न? हमारे सुख का वेदन बंद हो जाता है। अशाता वेदनीय का हर्ज नहीं है। उसकी तो निर्जरा ही हो रही है।
SR No.030016
Book TitleAptavani Shreni 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2011
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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