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________________ आप्तवाणी-५ १३ प्रश्नकर्ता : यह जो जन्म-मरण का चक्र चलता है, उसका आत्मा पर असर होने से 'कॉज़ेज़' होते हैं, वह सही है? दादाश्री : नहीं, नहीं। आत्मा पर असर नहीं होता है। आत्मा का स्वभाव बदलता ही नहीं। उसे सिर्फ 'रोंग बिलीफ़' ही बैठती है। प्रश्नकर्ता : ‘रोंग बिलीफ़' किस तरह बैठ गई? दादाश्री : खुद के स्वरूप का भान नहीं रहा इसलिए इन लोगों ने दूसरा भान बिठाया और वह ज्ञान फिट हो गया। इसलिए लोग कहते हैं उसके अनुसार उसे श्रद्धा बैठ गई कि वास्तव में 'मैं चंदूभाई हूँ' और ये सारे लोग भी 'एक्सेप्ट' करते हैं। ऐसे करते-करते ‘बिलीफ़' किसी भी प्रकार से 'फ्रेक्चर' होती ही नहीं। आत्मा में कुछ भी बदलाव नहीं होता। आत्मा तो सौ प्रतिशत शुद्ध सोने जैसा ही रहता है। सोने में तांबे की मिलावट हो जाए उससे सोना बिगड़ नहीं जाता! दृष्टि - मिथ्या और सम्यक् दादाश्री : यह उल्टी दृष्टि है, मिथ्यादृष्टि है, उससे ही ये दुःख उत्पन्न हुए हैं। और समकित अर्थात् सीधी दृष्टि। कभी भी आपकी दृष्टि सीधी हुई थी क्या? प्रश्नकर्ता : नहीं। दादाश्री : पूरा संसारकाल घूम चुके, फिर भी एक क्षण के लिए भी सीधी दृष्टि नहीं हुई। क्या नाम है आपका? प्रश्नकर्ता : चंदूभाई। दादाश्री : 'आप चंदूभाई हो', यह बात सच है? प्रश्नकर्ता : मिथ्यात्व लगता है, अहम्पद लगता है। दादाश्री : तो फिर आप कौन हो? प्रश्नकर्ता : उसका ख्याल नहीं आता।
SR No.030016
Book TitleAptavani Shreni 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2011
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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