SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 40
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आप्तवाणी-५ कृपालुदेव ने अपनी पूरी पुस्तक के सार में कहा है कि, 'और कुछ भी मत ढूँढ, मात्र एक सत् पुरुष को ढूँढकर उनके चरणकमल में सर्व भाव अर्पण करके बरतता जा। फिर यदि मोक्ष नहीं मिले, तो मेरे पास से ले लेना।' अर्थात् हमें यदि मोक्ष नहीं मिले तो वे 'ज्ञानी पुरुष' नहीं हैं। प्रश्नकर्ता : आत्मा खुद के धर्म में आ गया, उसका प्रमाण क्या? दादाश्री : यह सब 'मैं कर रहा हूँ' और यह 'मैं हूँ' ये जो रोंग बिलीफ़ पड़ी हुई हैं, वे चली जाती हैं। अभी तो आपको 'मैं चंदूभाई हूँ, इस स्त्री का पति हूँ, इस बच्चे का फादर हूँ, इसका मामा हूँ, मूंगफली का व्यापारी हूँ' ऐसी कितनी सारी रोंग बिलीफ़ आपको होंगी? प्रश्नकर्ता : असंख्य। दादाश्री : अब इतनी सारी रोंग बिलीफ़ कब जाएँगी? आत्मा खुद के गुणधर्म में आ जाए तो ये सारी ‘रोंग बिलीफ़' चली जाएँगी। ‘रोंग बिलीफ़' खत्म हो जाएँगी और 'राइट बिलीफ़' बैठ जाएगी। 'राइट बिलीफ़' को सम्यक् दर्शन कहते हैं। 'ज्ञानी पुरुष' आत्मा को उसके धर्म में ला देते हैं, जबकि बाकी सब तो अपने-अपने धर्म में है ही। जब आपको अपने आत्मधर्म में आने की इच्छा हो, तब यहाँ पर आ जाना। 'हम' उसे धर्म में ले आएँगे। आत्मा खुद के धर्म में आ जाए, तो दूसरा सबकुछ छूट जाता है। चार वेद क्या कहते है? 'दिस इज़ नोट देट, दिस इज़ नोट देट!' (यह वह नहीं है, यह वह नहीं है!) तू जिस आत्मा को ढूँढ रहा है वह वेदों में नहीं है, 'गो टू ज्ञानी।' (ज्ञानी के पास जाओ।) आत्मा पुस्तक में उतारा जा सके वैसा नहीं है, क्योंकि आत्मा नि:शब्द है, अवर्णनीय है, अव्यक्तव्य है। वह शास्त्रों में किस तरह समाएगा? श्रीमद् राजचंद्र ने भी कहा है कि ज्ञान, ज्ञानी के पास है और उनके बिना आपका छुटकारा कभी भी नहीं हो सकता। इसलिए 'ज्ञानी' की ही
SR No.030016
Book TitleAptavani Shreni 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2011
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy