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आप्तवाणी-५
आत्मा और बुद्धि में फ़र्क है या नहीं? आत्मा, वह प्रकाश है और बुद्धि भी प्रकाश है। बुद्धि ‘इन्डायरेक्ट' प्रकाश है, और आत्मा तो 'डायरेक्ट' प्रकाश है। 'इन्डायरेक्ट' प्रकाश अर्थात् सूर्य का प्रकाश दर्पण पर पड़ा और दर्पण में से प्रकाश रसोईघर में गया। यह ‘इन्डायरेक्ट' प्रकाश हुआ। उसी तरह आत्मा का प्रकाश अहंकार पर पड़ता है और वहाँ से बाहर निकलता है, उसे बुद्धि कहते हैं। दर्पण की जगह पर अहंकार है और सूर्य की जगह पर आत्मा है। आत्मा मूल प्रकाशवान है। संपूर्ण स्व-पर प्रकाशक है। वह पर को प्रकाशित करता है और स्वयं को भी प्रकाशित करता है। आत्मा सभी ज्ञेयों को प्रकाशित करता है।
अर्थात् अहंकार के 'मीडियम' (माध्यम) से बुद्धि खड़ी हो गई है। अहंकार का मीडियम खत्म हो जाए तो बुद्धि नहीं रहेगी। फिर डायरेक्ट प्रकाश आएगा। मुझे डायरेक्ट प्रकाश मिलता है। आपको अब क्या करना बाकी रहा? अहंकार और बुद्धि को खत्म करना रहा। अब वह खत्म किस तरह से होंगे? 'आत्मा' खुद के धर्म में आ जाए तो वे दोनों निकल जाएँगे। दूसरे सभी तो अपने-अपने धर्म में ही हैं, और कुछ भी बदलने की ज़रूरत नहीं है।
अब 'आत्मा' को खुद के धर्म में लाने के लिए क्या करोगे? उसके लिए क्या साधन चाहिए?
प्रश्नकर्ता : राग-द्वेष कम हो जाने चाहिए।
दादाश्री : यह अँगूठी है। उसके अंदर तांबे का मिक्सचर है। अब हम किसीसे भी कहें कि इसमें से सोना और तांबा अलग कर दो, तो वह कर सकेगा क्या?
प्रश्नकर्ता : नहीं कर सकेगा। दादाश्री : ऐसा क्यों? प्रश्नकर्ता : वह तो सुनार का ही काम है। दादाश्री : दूसरे सब मना करते हैं कि यह हमारा काम नहीं है।