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________________ १५२ आप्तवाणी-५ दादाश्री : मतभेद अर्थात् क्या? टकराव। ऐसे सीधे-सीधे जा रहे हों और बीच में इलेक्ट्रिक का खंभा आता हो तो आपको समझना चाहिए। आप उसे कहो कि तू कौन बीच में रोकनेवाला? सामने भैंस का पुत्र - भैंसा आ रहा हो तो क्या हमें उसे ऐसा कहना चाहिए कि हट जा, हट जा! प्रश्नकर्ता : वह नहीं चलेगा। दादाश्री : वहाँ हमें हट जाना चाहिए। साँप आ रहा हो तो? प्रश्नकर्ता : यह तो जानवरों की दुनिया हुई। दादाश्री : यह जो जानवरों के बारे में कह रहा हूँ, मनुष्य भी वैसे ही हैं। प्रश्नकर्ता : उन्हें परखें किस तरह? दादाश्री : समझ में आ जाता है अपने को, उसके सींग ऊँचे करे तो हम नहीं समझ जाएँगे कि यह भैंसा है? तब हमें खिसक जाना चाहिए। मुझे तो उनके आने से पहले ही पता चल जाता है। सुगंध पर से ही पहचान लेता हूँ। कुछ पत्थर जैसे होते हैं, खंभे जैसे भी होते हैं। प्रश्नकर्ता : बहुतों के मुँह पर से पता चल जाता है न? दादाश्री : हाँ, सच है। परन्तु जिन्हें चेहरे पर से पता चल जाए, उनका खुद का थर्मामीटर कितना 'करेक्ट' रखना पड़ेगा? प्रश्नकर्ता : पूर्वग्रह रहित रखना पड़ेगा। दादाश्री : यदि मनुष्य पूर्वग्रह रहित हो जाए तो कल्याण ही हो जाएगा। कल आप मेरे साथ झगड़ा करके गए हों न, तो आप दूसरे दिन आओ तो मैंने कल की बात एक ओर रख दी होती है। पूर्वग्रह रखू तो वह मेरी भूल है। फिर भले ही आप दूसरे दिन वैसे निकलो, उसमें हर्ज नहीं है। इस पूर्वग्रह के कारण तो पूरी दुनिया मार खाती है और इसीलिए उसके कारण दोष लगते हैं। आप हो, ऐसा नहीं मानते हो और नहीं हो
SR No.030016
Book TitleAptavani Shreni 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2011
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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