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आप्तवाणी-५
पहले उनका पूरा शरीर काँप जाता है, क्योंकि इगोइज़म निकलता है। जहाँजहाँ जो करो उस कर्त्तापन का अहंकार बढ़ेगा, वैसे-वैसे परमात्मा दूर जाते जाएँगे।
साक्षीभाव प्रश्नकर्ता : साक्षीभाव यानी कि अंत आ गया न?
दादाश्री : सभी बातों में साक्षीभाव रहना चाहिए। 'चंदूभाई नालायक हैं' ऐसा कहते ही साक्षीभाव नहीं रहता। जेब कट जाए तब भी साक्षीभाव नहीं रहता, क्योंकि साक्षीभाव अहंकार से रहता है। साक्षीभाव का अर्थ क्या है? वास्तव में साक्षीभाव वीतराग होने का एक स्टेप है, सच्चा स्टेप है। साक्षीभाव और दृष्टाभाव में बहुत फर्क है।
जहाँ आत्मा के गुण नहीं हैं, वहाँ आत्मा नहीं है। यह सोना है, वह अपने गुण में हो तब तक वह सोना होता है। दूसरे के गुण में खुद नहीं होता। इस संसार में जो दिखता है, वे सब दूसरे के गुण हैं। वहाँ खुद नहीं होता। खुद ज्ञाता-दृष्टा होता है, परन्तु एकाकार नहीं होता, आत्मा मिलावटवाला नहीं है, बिना मिलावटवाला है।
___ क्रमिक मार्ग में सारे जागृति लाने के रास्ते हैं। उससे जागृति बढ़ती जाती है। जितने से वीतराग हुआ, उतनी जागृति उसे रहती है, और जितने में राग-द्वेष है, उतने में जागृति नहीं रहती उसे। व्याख्यान में राग-द्वेष है, लोगों की बातचीत में राग-द्वेष है। भला करने में राग-द्वेष है। शुभ करने में रागद्वेष है। उनमें उन्हें जागृति नहीं रहती। राग-द्वेष के कारण जागृति रुक जाती है। जिसे तप पर राग हो गया हो, फिर उसे दूसरा कुछ नहीं सूझता।
रोके जीव स्वच्छंद तो... स्वच्छंद छोड़े तो मोक्ष प्राप्त करेगा। गुरु भी स्वच्छंदी नहीं चाहिए। गुरु स्वच्छंदी तो फिर शिष्य भी स्वच्छंदी।
प्रश्नकर्ता : गुरु किस प्रकार से स्वच्छंदी नहीं होते?