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________________ आप्तवाणी-५ १०१ हम आपके घर आए और आप वाइफ के प्रति चिढ़ गए हों तो हम उसकी नोंध नहीं करते कि आप यह गलत कर रहे हो। आपकी वह चिढ़ डिस्चार्ज है। आपको 'ज्ञान' दिया है इसलिए आप कच्चे नहीं पड़ते। परन्तु डिस्चार्ज तो होगा ही न? हम इतना ही देख लेते हैं कि उपयोग था या नहीं। प्रश्नकर्ता : दृष्टि का दृष्टा ढूंढ़ने की बात अभी तक मुझे समझ में नहीं आई, वह मुझे ज़रा समझाइए। दादाश्री : हम सब दृष्टा को ढूंढकर बैठे हैं, परन्तु जिसे स्वरूप का भान नहीं है उसे कहते हैं कि, 'जिस पर तेरी दृष्टि पड़ रही है वह तो दृश्य है, परन्तु वहाँ दृष्टा कौन है, उसकी खोज कर।' ऐसा हम कहना चाहते हैं। बाहर तो यह इन्द्रियदृष्टि है। परन्तु जब मन की सभी क्रियाएँ - मन क्या-क्या बोलता है? क्या सोचता है? फिर बुद्धि की क्रिया - बुद्धि क्या -क्या दिखाती है? फिर चित्त कहाँ-कहाँ भटकता है? अहंकार डिप्रेस हो जाता है या एलिवेट हो जाता है? इन सबको देखते रहना, वही अपना दृष्टा। दृष्टि का विषय दृश्य है और हम दृष्टा हैं। प्रश्नकर्ता : बाहर की या अंदर की किसी भी घटना में, कोई भी उदय हो, तब हम जानते हैं कि यह मेरा स्वभाव नहीं है, तब अनुभव होता है न? दादाश्री : हाँ, होता है न! मेरा स्वभाव यह नहीं है, ऐसा जो समझता है वह 'खुद के स्वभाव' में स्थिर होता है। 'चंदूलाल' कितने भी अकुलाए हुए हों, फिर भी 'आपकी' जागृति जाती नहीं ऐसा यह 'ज्ञान' है, और अकुलाहट तो हुए बगैर रहेगी ही नहीं, क्योंकि भीतर भरा हुआ माल है डिस्चार्ज अर्थात् उल्टी होती है, वैसी बात है! किसी मनुष्य से आपके ऊपर उल्टी हो गई, उसे लेकर उसे डाँटते नहीं हो, क्योंकि उस बेचारे को करना नहीं है लेकिन हो जाता है। उसका वह क्या करे? वैसे
SR No.030016
Book TitleAptavani Shreni 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2011
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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