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________________ एक महान तत्वज्ञानी परम पूज्य दादाश्री के उत्तरों पर आफ़रीन होकर पूछ बैठे, 'दादा, आप सभी प्रश्नों के जवाब कहाँ से देते हैं?!' तब पूज्य दादाश्री ने हँसते-हँसते कहा, "मैं यह पढ़ा हुआ नहीं बोलता हूँ, यह 'केवळज्ञान' में से 'देखकर' बोलता हूँ!!" फिर एक व्यक्ति ने उनसे पूछा था, 'दादा, आप इतने सारे प्रश्नों के जवाब देते हैं, फिर भी कभी एक भी भूल नहीं निकलती, उसका क्या कारण है?' तब पूज्य दादाश्री ने कहा, 'यह टेप में से निकलता है इसलिए। मैं यदि बोलने जाऊँ तो निरी भूलें ही निकलें!!!' संपूर्ण निरअहंकार का यह तादृश्य दर्शन है! कारुण्यमूर्ति दादाश्री का न तो कोई पंथ है, न ही पक्ष, न ही कोई सम्प्रदाय, न तो किसी प्रकार का खंडन है, न ही किसीका मंडन (स्थापन) है। उनके पास न तो कोई गद्दी है, न ही कोई गद्दीपति!!! उनके पास तो केवळ एक कारुण्यभाव है कि किस प्रकार इस जगत् के जीव असह्य आर्तता में से विमुक्त होकर आत्मा की अनंत समाधि में लीन हो जाएँ! पुण्य के योग से जो उनके पास पहुँच गया और अंत में उन्हें ज्ञानावतारी पुरुष के रूप में पहचान गया उसका बेड़ा पार हो गया! वर्ना सीधे-सादे, सरल और कोट-टोपी के श्रृंगार में सजे हुए इन भव्यात्मा को सामान्य दृष्टि किस प्रकार से समझ सकती है? उसके लिए तो जौहरी की नज़र ही चाहिए! परमकृपालु दादाश्री के श्रीमुख से प्रवाहित प्रकट वाणी की यथासमझ संकलन के, जनसमक्ष प्रकटीकरण का एक ही अंतरआशय है कि जगत् उन्हें पहचानकर, उनके ज्ञान का अलभ्य लाभ लेकर, प्रत्यक्ष योग साधकर, आदि-व्याधि और उपाधि (बाहर से आनेवाले दुःख) में भी निरंतर समाधि प्राप्त कर लें। जो हम जैसे हज़ारों पुण्यात्माओं को मिल चुका है! -- डॉ. नीरूबहन अमीन के जय सच्चिदानंद।
SR No.030016
Book TitleAptavani Shreni 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2011
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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