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________________ ७४ आप्तवाणी-५ के जाप करें, उसमें चित्त कब तक रहेगा? जब तक पुलिसवाला नहीं आया तब तक। पुलिसवाला आया कि जप भी खत्म हो जाएगा और चित्त भी खत्म हो जाएगा। इसलिए वह टेम्परेरी एडजस्टमेन्ट हैं। रिलीफ़ देता है, शांति देने में मदद करता है, परन्तु हमेशा के लिए काम नहीं करता। इस जपयोग की ज़रूरत है ज़रूर, परन्तु जब तक सनातन वस्तु नहीं मिले, तब तक। जो चित्त सनातन में मिल गया, वह शुद्ध चित्त हो गया, और शुद्धात्मा हो गया, तब विदेही हो गया। और विदेही हो गया अर्थात् मुक्ति हो गई। यानी विदेही होने की ज़रूरत है। ये तो देही कहलाते हैं। मैं चंदूभाई हूँ' तब से ही भ्रांति। 'ज्ञानी पुरुष' हमारी नींद उड़ा देते हैं। पूरा जगत् खुली आँखों से सो रहा है, सोना अर्थात् 'मैं यह कर रहा हूँ', 'मैं कर्ता हूँ' ऐसा भान रहता है। इस वर्ल्ड में कोई व्यक्ति ऐसा नहीं जन्मा है कि जिसे संडास जाने की स्वतंत्र शक्ति हो और खुद की जो शक्ति है, उसे खुद जानता नहीं है। खुद की शक्ति स्वक्षेत्र में है। खुद की शक्ति क्षेत्रज्ञ है। वह क्षेत्रज्ञ शक्ति उत्पन्न हो गई तो काम हो गया। क्षेत्रज्ञ संपूर्ण शक्ति है। बाकी सब भ्रांति है। यह जपयज्ञ बहुत सुंदर साधन है, परन्तु जब तक निष्पक्षपाती भाव उत्पन्न नहीं होगा तब तक के लिए वह साधन है। वह साध्य वस्तु नहीं है। साध्य क्षेत्रज्ञ है। खुद का स्वभाव क्षेत्रज्ञ है। वैसा स्वभाव उत्पन्न हो जाए, वह साध्य है। जब तक पक्ष में पड़ा है, तब तक भगवान नहीं मिलेंगे। कोई वैष्णव पक्ष में, कोई शिव पक्ष में, कोई मुस्लिम पक्ष में, कोई जैन पक्ष में है, तब तक भगवान कभी भी नहीं मिलेंगे। यह नियम ही है। भगवान का नियम ऐसा है कि पक्ष में पड़े हुए के साथ मिलना नहीं हैं। भगवान खुद ही निष्पक्षपाती हैं। वैसा निष्पक्षपाती भाव उत्पन्न होगा तब वह बात समझ में आएगी। पक्ष में पड़ा हुआ और संसार में पड़ा हुआ, उन दोनों में फर्क क्या है? आड़ाईयाँ प्रश्नकर्ता : आड़ाई (अहंकार का टेढ़ापन) किसे कहते हैं?
SR No.030016
Book TitleAptavani Shreni 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2011
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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