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________________ आप्तवाणी-३ ४१ की जागृति इतनी अधिक है कि डिस्चार्ज के एक भी परमाणु को खुद का नहीं मानते, डिस्चार्ज ही मानते हैं। इसके बावजूद संपूर्ण केवलज्ञान नहीं बरतता, चार डिग्री कम रहता है। ३६० डिग्री पर संपूर्ण होता है, हमें वह नहीं पचा और ३५६ डिग्री पर आकर रुक गया! आत्मा जानने की जागृति के अलावा बाकी की सारी ही जागृति भ्रांत जागृति है, संसार-जागृति है। वह संसार में हेल्प करती है। निजस्वरूप का ज्ञान, भान और परिणति, वही महावीर है। आत्मा होकर आत्मा में बरते, आत्मा में तन्मयाकार रहे, वह ज्ञानी है। ज्ञान, परमविनय से प्राप्त प्रश्नकर्ता : आप हमें विधि में क्या दे देते हैं? दादाश्री : जो देता है, वह तो भिखारी बन जाता है। हम देते नहीं हैं, उसी प्रकार हम स्वीकार भी नहीं करते। हम वीतराग रहते हैं। इसीलिए आप जो भी दोगे वह सौ गुना होकर आपको वापस मिलेगा। आप एक फूल दोगे तो आपको सौ मिलेंगे और एक पत्थर डालोगे तो आपको सौ मिलेंगे! प्रश्नकर्ता : आप कृपा बरसाते हैं, वह क्या है? दादाश्री : वह भी यही है। जैसा भाव आप रखते हो उसका सौ गुना होकर आपको मिलता है। प्रश्नकर्ता : किसीको आपके जैसा ज्ञान प्राप्त करना हो तो उसका वर्तन कैसा होना चाहिए? दादाश्री : माँ-बाप के साथ विनय होना चाहिए, उनकी आज्ञा में रहना चाहिए, और यहाँ पर परम विनय होना चाहिए। प्रश्नकर्ता : परम विनय का मतलब क्या है? दादाश्री : अहंकार रहित स्थिति। ज्ञान का स्वभाव कैसा है कि ऊपर से नीचे आता है। अत: यदि परम विनय चूके तो वह ज्ञान को ही वापस कर देगा!
SR No.030015
Book TitleAptavani Shreni 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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