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________________ आप्तवाणी-३ २३ दादाश्री : नहीं, दिव्यचक्षु तो चक्षु हैं और प्रज्ञा तो एक शक्ति है। दिव्यचक्षु का तो आप यदि उपयोग नहीं करोगे तो उपयोग में नहीं आएँगे, लेकिन एक बार प्रज्ञा जागृत हो जाए तो फिर वह निरंतर चेतावनी देती ही रहती है। प्रश्नकर्ता : क्या प्रज्ञा पुद्गल है? दादाश्री : नहीं, वह पुद्गल नहीं है, वह बीच का भाग है। आत्मा के मोक्ष में जाने तक वह रहती है। स्टीमर में चढ़ने के लिए सीढ़ियाँ रखते हैं न और फिर उठा लेते हैं, उसके जैसा है I प्रश्नकर्ता : प्रज्ञा मोक्ष में जाने तक रहती है या केवलज्ञान में जाने तक? दादाश्री : केवलज्ञान होने तक ही प्रज्ञा रहती है, फिर वह हट जाती है। हम जो यह मोक्ष में जाने तक कह रहे हैं, उसका अर्थ केवलज्ञान तक, प्रज्ञा के बारे में ऐसा अर्थ करना । प्रश्नकर्ता : जगत् कल्याण की भावना कौन करता है ? दादाश्री : यह प्रज्ञाशक्ति के कारण है । वास्तव में जगत् कल्याण की भावना करने का प्रज्ञा का काम नहीं है, लेकिन एकाध - दो जन्म बाकी रह जाते हैं, उस वजह से प्रज्ञाशक्ति के साथ एक सहायक शक्ति काम करती है, हालांकि दोनों एक जैसे ही हैं लगभग ।
SR No.030015
Book TitleAptavani Shreni 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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