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________________ आप्तवाणी-३ एक बार आत्मा प्रकट हुआ, तब अंदर जो चेतावनी देती रहती है, वह प्रज्ञा है। प्रज्ञा निरंतर आत्महित ही देखती रहती है। फिर सबकुछ प्रज्ञा ही कर लेती है। ठेठ मोक्ष में जाने तक। बाकी, आत्मा को कुछ भी करना नहीं पड़ता। प्रश्नकर्ता : प्रज्ञाशक्ति ही आत्मा है या अलग? दादाश्री : आत्मा और प्रज्ञा दोनों अलग चीजें हैं। आत्मा प्रकट होने के बाद में प्रज्ञा उत्पन्न होती है। आत्मा का अंग है वह। अज्ञ, स्थितप्रज्ञ, प्रज्ञा-भेद क्या? प्रश्नकर्ता : स्थितप्रज्ञ दशा का मतलब क्या है? क्या वही प्रज्ञा है? दादाश्री : स्थितप्रज्ञ दशा तो सबसे छोटा पद है। उसे लोग बहुत बड़ा पद मानते हैं। प्रज्ञाशक्ति का उत्पन्न होना तो बहुत बड़ी चीज़ है, वह निरंतर चेतावनी देती है। आत्मा का ऐश्वर्य है वह। ___'मैं करता हूँ' यदि उसमें निःशंक है, तो वह अज्ञदशा। 'मैं करता हूँ' अगर उसमें शंका होती है तो वह स्थितप्रज्ञ दशा है और 'मैं-पन' छूट गया तो प्रज्ञा उत्पन्न होती है। प्रश्नकर्ता : आत्मा की अनंत शक्ति है। पुद्गल की अनंत शक्ति है, तो उन दोनों को अलग करनेवाला कौन है? दादाश्री : प्रज्ञाशक्ति ही दोनों को अलग करती है। लेकिन 'ज्ञानीपुरुष' मिल जाएँ तभी प्रज्ञाशक्ति उत्पन्न होती है। प्रश्नकर्ता : चित्त और प्रज्ञा में क्या फर्क है? दादाश्री : चित्त तो, जो पहले से देखा हुआ होता है, वही दिखाता है और प्रज्ञा तो नया ही देखती है। खुद के दोष दिखाए, वह प्रज्ञा है। चित्त सभी को देखता है लेकिन प्रज्ञा को नहीं देख सकता। प्रज्ञा को तो हम देख सकते हैं। चित्त देखे हुए को देखता है, जब कि प्रज्ञा उससे अधिक जानती है। प्रश्नकर्ता : प्रज्ञा और दिव्यचक्षु दोनों एक ही हैं?
SR No.030015
Book TitleAptavani Shreni 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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