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आप्तवाणी-३
अनुभव होता है कि 'मैं शुद्धात्मा हूँ'। जो आज तक उल्टा चला था, वह वापस पलटता है। 'इस' ज्ञान के बाद में आपमें अब स्थूल अहंकार बचता है, कि जो निर्जिव है, सजीव भाग खिंच गया। स्थूल अहंकार का फोटो लिया जा सकता है। फिर बचता है सूक्ष्म, सूक्ष्मतर और सूक्ष्मतम अहंकार, कि जिसे अनुभव होता है। यह किसके जैसी बात है? बातचीत करते समय डोजिंग हो जाए और वापस बातचीत करे। इसमें 'किसे डोजिंग हुआ और किसने जाना' उसके जैसा है!
विचार करके आत्मा जाना जा सकता है? प्रश्नकर्ता : विचार करके क्या आत्मज्ञान प्राप्त हो सकता है?
दादाश्री : विचार, वह बहुत आवरणवाला ज्ञान है, वह रिलेटिव ज्ञान कहलाता है। निर्विचार, वह रियल ज्ञान माना जाता है। निर्विचार दशा, वह ज्ञान की 'एब्सोल्यूट' दशा है।
विचार करके आप यदि भगवान को ढूँढ रहे हो, तब तो अभी तक आप स्थूल में ही हो। उसके बाद सूक्ष्म, सूक्ष्मतर और सूक्ष्मतम में जाओगे, तब खुदा दिखेंगे। बाकी, विचार तो उस तरफ ले जानेवाली चीज़ है। विचार
और शब्द आवरणवाले हैं। जब तक शब्द हैं, तब तक आवरण हैं। जहाँ पर शब्द नहीं पहुँचता, विचार नहीं पहुँचता, वहाँ पर खुदा बैठे हुए हैं।
प्रश्नकर्ता : आत्मा को अलग किया, तो क्या उसकी उत्पत्ति विचार में से नहीं होती?
दादाश्री : विचार बहुत अलग चीज़ है। आत्मा उससे बिल्कुल अलग ही वस्तु है, लेकिन भ्रांति से ऐसा लगता है कि 'मुझे विचार आ रहे हैं।' भ्रांति की वह गांठ टूट जानी चाहिए। 'मैं चंदूलाल हूँ', वह भ्रांतिभाव टूट जाएगा तो हल आ जाएगा।
प्रश्नकर्ता : आत्म स्थिति सतत रहती है या विचार की माफ़िक क्षणिक रहती है?
दादाश्री : जो क्षणिक रहे, वह आत्मा ही नहीं कहलाता। निरंतर रहे तभी 'आत्मा प्राप्त हुआ है', ऐसा कहा जाएगा।