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________________ आप्तवाणी-३ करता है और दूसरा ऐसे हाथ करता है, तो दोनों स्टेशन पर पहुँच जाते हैं! वे दोनों अपनी संज्ञा से समझ जाते हैं। हमें उसमें पता नहीं चल सकता। उसी तरह 'ज्ञानी' की संज्ञा को ज्ञानी ही समझ सकते हैं। वह तो जब 'ज्ञानी' कृपा बरसाएँ और संज्ञा से समझाएँ, तभी आपका आत्मा जागृत हो सकता है। आत्मा शब्द-स्वरूप नहीं है, स्वभाव-स्वरूप है। अनंत भेद से आत्मा है, अनंत गुणधाम है, अनंत ज्ञानवाला हैं, अनंत दर्शनवाला है, अनंत सुख का धाम है और अनंत प्रदेशी है। लेकिन अभी आपमें यह सब आवृत है। 'ज्ञानीपुरुष' आवरण तोड़ देते हैं। उनके एक-एक शब्द में ऐसा वचनबल होता है कि सभी आवरण तोड़ देते हैं। उनका एक-एक शब्द पूरे शास्त्र बना दे! आत्मा ज्ञान-स्वरूप नहीं है, विज्ञान-स्वरूप हैं। इसलिए विज्ञान को जानो। वीतराग विज्ञान मुश्किल नहीं है, लेकिन उनके ज्ञाता और दाता नहीं होते। कभी-कभी ही जब ऐसे 'ज्ञानीपुरुष' प्रकट होते हैं, तब इसका स्पष्टीकरण मिल जाता है। बाकी, अगर सबसे आसान चीज़ है तो वह वीतराग विज्ञान है, दूसरे सभी विज्ञान मुश्किल हैं। अन्य प्रकार के विज्ञान के लिए तो रिसर्च सेन्टर बनाने पड़ते हैं और पत्नी-बच्चों को तो बारह महीनों तक भूल जाए, तब रिसर्च हो पाती है! और यह वीतराग विज्ञान तो, 'ज्ञानीपुरुष' के पास गए, तो प्राप्त हो जाता है, आसानी से प्राप्त हो जाता है। प्रश्नकर्ता : 'मैं आत्मा हूँ' उसका ज्ञान किस तरह से होता है? खुद अनुभूति किस तरह से कर सकता है? दादाश्री : वह अनुभूति करवाने के लिए ही तो 'हम' बैठे हैं। यहाँ पर जब हम 'ज्ञान' देते हैं, तब 'आत्मा' और 'अनात्मा' दोनों को जुदा कर देते हैं और फिर आपको घर भेजते हैं। ज्ञान की प्राप्ति, 'ज्ञानी' के माध्यम से ही! बाकी, यह खुद से हो सके ऐसा नहीं है। अगर खुद से हो सकता तो ये साधु, संन्यासी सभी करके बैठ चुके होते। लेकिन वहाँ तो 'ज्ञानीपुरुष' का ही काम है। 'ज्ञानीपुरुष' इसके निमित्त हैं।
SR No.030015
Book TitleAptavani Shreni 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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