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________________ आप्तवाणी-३ जो पुस्तक में नहीं समा सकता। आत्मा अवर्णनीय, अवक्तव्य, नि:शब्द है! वह शास्त्र में किस तरह से समाएगा? वह तो चार वेद और जैनों के चार अनुयोगों से आगे की बात है। चार वेद पूरे हो जाएँ, तब वेद इटसेल्फ कहते हैं कि, 'दिस इज़ नॉट देट, दिस इज़ नॉट देट। गो टु ज्ञानी।' जैनों के शास्त्र भी कहते हैं कि ज्ञान 'ज्ञानी' के हृदय में है। शास्त्रज्ञान से निबेड़ा नहीं है, अनुभवज्ञान से निबेड़ा है। आत्मा जानने से जाना जा सके, ऐसा नहीं है। आत्मा तो इस पूरे वर्ल्ड की गुह्यतम् वस्तु है। जगत् जहाँ पर आत्मा को मान रहा है, वहाँ पर आत्मा की परछाई भी नहीं है। 'खुद' अनंत प्राकृत अवस्थाओं में से बाहर निकल ही नहीं पाता, तो वह आत्मा को किस तरह से प्राप्त कर सकेगा? आत्मा मिलना इतना आसान नहीं है। जगत् जिसे आत्मा मान रहा है, वह मिकेनिकल आत्मा है, जिस ज्ञान को ढूँढ रहा है, वह मिकेनिकल आत्मा का ढूँढ रहा है। मूल आत्मा का तो भान ही नहीं है। जप करके, तप करके, त्याग करके, ध्यान करके जिसे स्थिर करने जाता है, वह चंचल को ही स्थिर करने जाता है और आत्मा तो खुद स्वभाव से ही अचल है। स्वभाव से जो अचल है, उसे आत्मा की अचलता कहते हैं, लेकिन यह तो नासमझी से खुद की भाषा में ले जाते हैं, इसलिए अस्वाभाविक अचलता प्राप्त होती है! आत्मा को जानें, किस तरह? प्रश्नकर्ता : आत्मा की आराधना किस तरह करनी चाहिए? दादाश्री : 'ज्ञानीपुरुष' से माँग लेना कि मुझसे आत्मा की आराधना हो सके, ऐसा कर दीजिए, तो 'ज्ञानीपुरुष' कर देंगे। 'ज्ञानीपुरुष' जो चाहें वह कर सकते हैं। क्योंकि वे खुद किसी भी चीज़ के कर्ता नहीं होते। भगवान भी जिनके वश में रहते हैं, वे 'ज्ञानीपुरुष' क्या नहीं कर सकते? फिर भी खुद संपूर्ण निअहंकारी पद में होते हैं, निमित्त पद में ही होते हैं। आत्मा, शब्द से समझा जा सके वैसा नहीं है, संज्ञा से समझा जा सकता है। 'ज्ञानीपुरुष' आपका आत्मा संज्ञा से जागृत कर देते हैं। जैसे कि यदि दो गूंगे लोग हों, तो उनकी भाषा अलग ही होती है, एक ऐसे हाथ
SR No.030015
Book TitleAptavani Shreni 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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