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खंड-2 व्यवहार ज्ञान
[१] जीवन जीने की कला ऐसी ‘लाइफ' में क्या सार? १३३ और ऐसी गोठवणी से सुख... १४२ परंतु वह कला कौन सिखलाए? १३४ बैर खपे और आनंद भी रहे १४४ समझ कैसी? कि दुःखमय... १३६ साहिबी, फिर भी भोगते नहीं १४६ ऐसे शौक की कहाँ ज़रूरत है? १३८ संसार सहज ही चले, वहाँ... १४७ किसमें हित? निश्चित करना पड़ेगा१४०
[२] योग-उपयोग परोपकाराय जीवन में, महत् कार्य ही ये दो १४९ परोपकार, परिणाम में लाभ ही १५० परोपकार से पुण्य साथ में १४९
३] दुःख वास्तव में है? 'राइट बिलीफ़' वहाँ दुःख नहीं १५४ ...निश्चित करने जैसा 'प्रोजेक्ट' १५८ दुःख तो कब माना जाता है? १५४ ...मात्र भावना ही करनी है १५८ 'पेमेन्ट' में तो समता रखनी... १५६
[४] फैमिलि आर्गेनाइजेशन यह तो कैसी लाइफ? १६० ...फिर भी उचित व्यवहार... १७१ ऐसा संस्कार सिंचन शोभा देता... १६१ फ़र्ज़ में नाटकीय रहो १७३ प्रेममय डीलिंग-बच्चे सुधरेंगे... १६२ बच्चों के साथ 'ग्लास विद केयर'१७४ ....नहीं तो मौन रखकर 'देखते' रहो१६३ घर, एक बगीचा
१७५ ...खुद का ही सुधारने की ज़रूरत१६४ उसमें मूर्छित होने जैसा है ही... १७७ दख़ल नहीं, 'एडजस्ट' होने... १६५ व्यवहार नोर्मेलिटीपूर्वक होना चाहिए १७७ सुधारने के लिए 'कहना' बंद... १६७ उसकी तो आशा ही मत रखना १७९ रिलेटिव समझकर उपलक रहना १६८ 'मित्रता', वह भी 'एडजस्टमेन्ट' १७९ सलाह देनी, परंतु देनी ही पड़े... १६९ खरा धर्मोदय ही अब १८० अब, इस भव में तो सँभाल ले १७० संस्कार प्राप्त करवाए, वैसा... १८१ सच्ची सगाई या पराई पीड़ा? १७० इसलिए सद्भावना की ओर मोड़ो१८१
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