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से मिलेगा? इसीलिए वे तो बीबी को झूला झुलाते हैं। 'पत्नी चढ़ बैठेगी' इस डर से पति पत्नी को दबाने जाता है और क्लेश करता है! ऐसे तो कहीं पत्नी चढ बैठती होगी?! स्त्रियों को क्या मछे आ जाएँगी? भले ही कितनी भी कोशिश करें, फिर भी? पत्नी की माँग पूरी नहीं कर सके और पत्नी क्लेश करने जाए तब भी, 'यार, मेरी हालत मैं जानता हूँ, तू क्या जाने', करके पत्नी को पटा लेता है! और लोग तो 'तू मेरे सामने क्यों बोली?' करके विस्फोट कर देते हैं ! किसी भी तरह से ऐसा कर देना कि विस्फोट नहीं हो।
___ आपमें कलुषित भाव नहीं रहे तो सामनेवाले का कलुषित भाव चला जाएगा! आप शांत हैं तो सामनेवाला भी शांत है! जहाँ क्लेश है वहाँ भगवान का वास नहीं है और लक्ष्मी भी वहाँ पर नहीं जाती, आज तो संस्कारी घरों में भी रोज़ सुबह नाश्ते में क्लेश होता है( !) जहाँ पर क्लेश है, वहाँ धर्म ही नहीं है! धर्म की शुरूआत क्लेश रहित जीवन से होती है।
वाइफ के साथ अविभक्त वाणी होनी चाहिए। 'मेरा-तेरा नहीं होना चाहिए।' 'अपना' होना चाहिए।
घर के लोग उल्टा करें, फिर भी खुद सीधा करे, वह समकित की निशानी है।
शादी करने में हर्ज नहीं है। संसार तो 'टेस्ट एक्जामिनेशन' है। उसमें 'टेस्टेड' हो जाएगा तभी मोक्ष में जा पाएगा। भरत चक्रवर्ती की तो १३०० रानियाँ थीं, फिर भी वे मोक्ष में गए!
मतभेद होने का कारण घोर अज्ञानता है!
जब पुरुष में प्रभुत्व नहीं होता, तभी स्त्री पुरुष की नहीं सुनती। पहले पुरुष का प्रभाव पड़ना चाहिए। स्त्री की कितनी ही भूलों को वह समझदारी से चला ले तो उसका स्त्री पर प्रभाव पड़ेगा। यह तो दाल में नमक कम हो तो भी कलह करता है फिर प्रभाव कहाँ से रहेगा?! स्त्रीप्रकृति को पूरी तरह से पहचानकर उसके बाद ही उसके साथ
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