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________________ आप्तवाणी-३ २७७ किसीको दुःख नहीं होना चाहिए, यह देखना है, और दुःख हुआ हो तो प्रतिक्रमण कर लेना, उसका नाम आदर्श व्यवहार। हमारा आदर्श व्यवहार होता है। हमसे किसीको अड़चन हो, ऐसा नहीं होता। किसी के खाते में हमारी अड़चन जमा नहीं होती। हमें कोई अड़चन दे और हम भी अड़चन दें तो हम में और आपमें फर्क क्या? हम सरल हैं, सामनेवाले को आँटी में डालकर सरल रहते हैं। इसलिए सामनेवाला समझता है कि, 'दादा अभी कच्चे हैं।' हाँ, कच्चे होकर छूट जाना बेहतर, परंतु पक्के होकर उसकी जेल में जाना गलत, ऐसा तो किया जाता होगा? हमें हमारे भागीदार ने कहा कि, 'आप बहुत भोले हैं।' तब मैंने कहा कि, 'मुझे भोला कहनेवाला ही भोला है।' तब उन्होंने कहा कि, 'आपको बहुत लोग छल जाते हैं।' तब मैंने कहा कि, 'हम जान-बूझकर छले जाते हैं।' हमारा संपूर्ण आदर्श व्यवहार होता है। जिनके व्यवहार में कोई भी कमी होगी, वह मोक्ष के लिए पूरा लायक हुआ नहीं कहा जाएगा। प्रश्नकर्ता : ज्ञानी के व्यवहार में दो व्यक्तियों के बीच भेद होता है? दादाश्री : उनकी दृष्टि में भेद ही नहीं होता, वीतरागता होती है। उनके व्यवहार में भेद होता है। एक मिलमालिक और उसका ड्राइवर यहाँ आए, तो सेठ को सामने बिठाऊँगा और ड्राइवर को मेरे पास बिठाऊँगा, इससे सेठ का पारा उतर जाएगा! और प्रधानमंत्री आएँ तो मैं खड़ा होकर उनका स्वागत करूँगा और उन्हें बिठाऊँगा, उनका व्यवहार नहीं चूकूँगा। उन्हें तो विनयपूर्वक ऊपर बिठाऊँगा, और उन्हें यदि मेरे पास से ज्ञान ग्रहण करना हो, तो मेरे सामने नीचे बिठाऊँगा, नहीं तो ऊँचे बिठाऊँगा। लोकमान्य को व्यवहार कहा है और मोक्षमान्य को निश्चय कहा है। इसलिए लोकमान्य व्यवहार को उसी रूप में एक्सेप्ट करना पड़ता है। हम उठकर उन्हें नहीं बुलाएँ तो उन्हें दुःख होगा, उसकी जोखिमदारी हमारी कहलाएगी। प्रश्नकर्ता : जो बड़े हों, उन्हें पूज्य मानना चाहिए? दादाश्री : बड़े मतलब उम्र में बड़े हों ऐसा नहीं, फिर भी माँजी
SR No.030015
Book TitleAptavani Shreni 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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