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________________ [१०] आदर्श व्यवहार अंत में, व्यवहार आदर्श चाहिए आदर्श व्यवहार के बिना कोई मोक्ष में नहीं गया। जैन व्यवहार, वह आदर्श व्यवहार नहीं है । वैष्णव व्यवहार, वह आदर्श व्यवहार नहीं है । मोक्ष में जाने के लिए आदर्श व्यवहार की ज़रूरत पड़ेगी। I आदर्श व्यवहार मतलब किसी जीव को किंचित् मात्र दुःख नहीं हो, वह। घरवाले, बाहरवाले, अड़ोसी - पड़ोसी किसीको भी आप से दुःख नहीं हो वह आदर्श व्यवहार कहलाता है । जैन व्यवहार का अभिनिवेश (अपने मत को सही मानकर पकड़े रखना) करने जैसा नहीं है । वैष्णव व्यवहार का अभिनिवेश करने जैसा नहीं है। सारा अभिनिवेश व्यवहार है। भगवान महावीर का आदर्श व्यवहार होता था। आदर्श व्यवहार हो मतलब जो दुश्मन को भी नहीं अखरे । आदर्श व्यवहार मतलब मोक्ष में जाने की निशानी। जैन या वैष्णव गच्छ में से मोक्ष नहीं है। हमारी आज्ञाएँ आपको आदर्श व्यवहार की तरफ ले जाती हैं। वे संपूर्ण समाधि में रखें वैसी हैं। आधि-व्याधि-उपाधी में समाधि रहे ऐसा है। बाहर सारा 'रिलेटिव' व्यवहार है और यह तो 'साइन्स' है। साइन्स मतलब रियल! आदर्श व्यवहार से अपने से किसीको दुःख नहीं होता, अपने से किसीको दुःख नहीं हो, उतना ही देखना है । फिर भी अपने से किसीको दुःख हो जाए तो तुरंत ही प्रतिक्रमण कर लेना । हमसे कुछ उनकी भाषा में नहीं जाया जा सकता। यह जो व्यवहार में पैसों के लेन-देन आदि व्यवहार हैं, वह तो सामान्य रिवाज है, उसे हम व्यवहार नहीं कहते,
SR No.030015
Book TitleAptavani Shreni 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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