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________________ आप्तवाणी-३ २७३ इसलिए बात को समझो। कुदरत तो 'आई विल हेल्प यू' कहती है। भगवान कुछ आपकी ‘हेल्प' नहीं करते। भगवान बेकार नहीं बैठे हैं। यह तो कुदरत की सब रचना है और वह भगवान की सिर्फ हाज़िरी से ही रचा गया है। प्रश्नकर्ता : हम कुदरत के 'गेस्ट' हैं या 'पार्ट ऑफ नेचर' हैं? दादाश्री : 'पार्ट ऑफ नेचर' भी हैं और 'गेस्ट' भी हैं। हम भी 'गेस्ट' के तौर पर रहना पसंद करते हैं। चाहे जहाँ बैठो, तब भी आपको हवा मिलती रहेगी, पानी मिलता रहेगा और वह भी 'फ्री ऑफ कॉस्ट'! जो अधिक क़ीमती है, वह 'फ्री ऑफ कॉस्ट' मिलता रहता है। कुदरत को जिसकी क़ीमत है, उसकी इन मनुष्यों को क़ीमत नहीं है। और जिसकी कुदरत के पास क़ीमत नहीं (जैसे कि हीरे), उसकी हमारे लोगों को बहुत क़ीमत है।
SR No.030015
Book TitleAptavani Shreni 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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