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________________ आप्तवाणी-३ २५५ प्रश्नकर्ता : सामनेवाला व्यक्ति अपना अपमान करे तब भी हमें उसका प्रतिक्रमण करना चाहिए? दादाश्री : अपमान करे तो ही प्रतिक्रमण करना है, आपको मान दे तब नहीं करना है। प्रतिक्रमण करोगे तो सामनेवाले पर द्वेषभाव तो होगा ही नहीं, ऊपर से उस पर आपका अच्छा असर पड़ेगा। आपके साथ द्वेषभाव नहीं होगा, वह तो समझो कि पहला स्टेप है, लेकिन फिर उसे खबर भी पहुँचती है। प्रश्नकर्ता : उसके आत्मा को पहुँचता है? दादाश्री : हाँ, ज़रूर पहुँचता है। फिर वह आत्मा उसके पुद्गल को भी धकेलता है कि, 'भाई, फोन आया तेरा।' यह जो अपना प्रतिक्रमण है, वह अतिक्रमण के ऊपर है, क्रमण पर नहीं। प्रश्नकर्ता : बहुत प्रतिक्रमण करने पड़ेंगे? दादाश्री : जितनी स्पीड में आपको मकान बनाना हो उतने कारीगर बढ़ाना। ऐसा है न, कि इन बाहर के लोगों के साथ आपके प्रतिक्रमण नहीं होंगे तो चलेगा, लेकिन अपने आसपास के और नज़दीक के, घर के लोग हैं, उनके प्रतिक्रमण अधिक करने हैं। घरवालों के लिए मन में भाव रखना है कि 'मेरे साथ जन्म लिया है, साथ में रहते हैं तो किसी दिन ये मोक्षमार्ग पर आएँ।' ....तो संसार अस्त हो जिसे 'एडजस्ट' होने की कला आ गई, वह दुनिया में से मोक्ष की ओर मुड़ा। 'एडजस्टमेन्ट' हुआ उसका नाम ज्ञान। जो 'एडजस्टमेन्ट' सीख गया वह तर गया। जो भुगतना है वह तो भुगतना ही होगा, लेकिन 'एडजस्टमेन्ट' आए उसे परेशानी नहीं आती, हिसाब साफ हो जाता है। सीधे के साथ तो हरकोई एडजस्ट हो जाता है, लेकिन टेढ़े-कठिन-कड़क के साथ में, सबके ही साथ एडजस्ट होना आया तो काम हो गया। मुख्य वस्तु एडजस्टमेन्ट है। 'हाँ' से मुक्ति है। हमने 'हाँ' कहा फिर भी 'व्यवस्थित' के बाहर कुछ होनेवाला है? लेकिन 'ना' कहा तो महा उपाधी।
SR No.030015
Book TitleAptavani Shreni 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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