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________________ २५२ आप्तवाणी-३ नोर्मेलिटी, सीखने जैसी प्रश्नकर्ता : व्यवहार में 'नोर्मेलिटी' की पहचान क्या है? दादाश्री : सब कहें कि, 'तू देर से उठती है, देर से उठती है', तो नहीं समझ जाना चाहिए कि यह नोर्मेलिटी खो गई है? रात को ढाई बजे उठकर तु घुमने लगे तो सब नहीं कहेंगे कि 'इतनी जल्दी क्यों उठती है?' इसे भी नोर्मेलिटी खो डाली कहेंगे। नोर्मेलिटी तो, सभी के साथ एडजस्ट हो जाए, ऐसी है। खाने में भी नोर्मेलिटी चाहिए, यदि पेट में अधिक डाला हो तो नींद आती रहती है। हमारी खाने-पीने की सारी नोर्मेलिटी आप देखना। सोने की, उठने की, सब में ही हमारी नोर्मेलिटी होती है। खाने बैठते हैं और थाली में पीछे से दूसरी मिठाई रख जाएँ तो मैं अब उसमें से थोड़ा-सा ले लेता हूँ। मैं मात्रा नहीं बदलने देता। मैं जानता हूँ कि यह दूसरा आया, इसलिए सब्जी निकाल डालो। आपको इतना सब करने की ज़रूरत नहीं है। यदि देर से उठ पाती हो तो आपको तो बोलते रहना कि 'नोर्मेलिटी में नहीं रहा जाता।' इसलिए आपको तो अंदर खुद को ही टोकना है कि 'जल्दी उठना चाहिए।' वह टोकना फायदा करेगा। इसे ही पुरुषार्थ कहा है। रात को रटती रहो कि 'जल्दी उठना है, जल्दी उठना है।' अगर ज़बरदस्ती जल्दी उठने का प्रयत्न करे, उससे तो दिमाग बिगड़ेगा। ...शक्तियाँ कितनी 'डाउन' गई? प्रश्नकर्ता : ‘पति ही परमात्मा है' वह क्या गलत है? दादाश्री : आज के पतियों को परमात्मा मानें तो वे पागल होकर घूमें ऐसे हैं! एक पति अपनी पत्नी से कहता है, 'तेरे सिर पर अंगारे रखकर उस पर रोटियाँ सेक।' मूल तो बंदर छाप और ऊपर से दारू पिलाओ, तो उसकी क्या दशा होगी? पुरुष तो कैसा होता है? ऐसे तेजस्वी पुरुष होते हैं कि जिनसे हज़ारों स्त्रियाँ काँपें। ऐसे देखते ही काँप उठे। आज तो पति ऐसे हो गए
SR No.030015
Book TitleAptavani Shreni 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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