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आप्तवाणी - ३
का क्लेशवाला स्वभाव पसंद नहीं हो, बड़े भाई का स्वभाव पसंद नहीं हो, इस तरफ पिताजी का स्वभाव पसंद नहीं हो, इस तरह के संग में मनुष्य फँस जाए तब भी रहना पड़ता है । कहाँ जाए पर ? इस फँसाव से चिढ़ मचती है, लेकिन जाए कहाँ ? चारों तरफ बाड़ है । समाज की बाड़ होती है। ‘समाज मुझे क्या कहेगा ?' सरकार की भी बाड़ें होती हैं। यदि परेशान होकर जलसमाधि लेने जुहू के किनारे जाए तो पुलिसवाले पकड़ेंगे। 'अरे भाई, मुझे आत्महत्या करने दे न चैन से, मरने दे न चैन से ।' तब वह कहेगा, 'ना, मरने भी नहीं दिया जा सकता । यहाँ तो आत्महत्या करने के प्रयास का गुनाह किया इसलिए तुझे जेल में डालते हैं ।' मरने भी नहीं देते और जीने भी नहीं देते, इसका नाम संसार ! इसलिए रहो न चैन से... और आराम से सो नहीं जाएँ ? ऐसा यह अनिवार्यतावाला जगत् ! मरने भी नहीं दे और जीने भी नहीं दे।
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इसलिए जैसे-तैसे करके एडजस्ट होकर टाइम बिता देना चाहिए ताकि उधार चुक जाए। किसी का पच्चीस वर्ष का, किसी का पंद्रह वर्ष का, किसी का तीस वर्ष का, ज़बरदस्ती हमें उधार पूरा करना पड़ता है । नहीं पसंद हो तब भी उसी के उसी कमरे में साथ में रहना पड़ता है I यहाँ बिस्तर मेमसाहब का और यहाँ बिस्तर भाईसाहब का । मुँह टेढ़े फिराकर सो जाएँ तब भी विचार में तो मेमसाहब को भाईसाहब ही आते हैं न? चारा ही नहीं है । यह जगत् ही ऐसा है । उसमें भी सिर्फ पति को ही वे पसंद नहीं हैं ऐसा नहीं है, उन्हें भी पति पसंद नहीं होते ! इसलिए इसमें मज़े लेने जैसा नहीं है ।
इस संसार के झंझट में विचारशील को पुसाता नहीं है। जो विचारशील नहीं है, उसे तो यह झंझट है उसका भी पता नहीं चलता। वह मोटा बहीखाता कहलाता है । जैसे कि कोई कान से बहरा आदमी हो, उसके सामने उसकी चाहे जितनी गुप्त बातें करें, उसमें क्या परेशानी है? ऐसा अंदर भी बहरा होता है सब इसलिए उसे यह जंजाल पुसाता है, में मज़े ढूँढने जाता है तो इसमें तो भाई कोई मज़ा होता होगा ?
बाकी जगत्
पोलम्पोल कब तक ढँकनी?
यह तो सारा बनावटी जगत् है ! और घर में कलह करके, रोकर