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________________ आप्तवाणी - ३ बंद रखना चाहिए। कहना तो पड़ता है लेकिन कहने का तरीका होता है। .... नहीं तो प्रार्थना का एडजस्टमेन्ट १९४ प्रश्नकर्ता : सामनेवाले को समझाने के लिए मैंने अपना पुरुषार्थ किया, फिर वह समझे या नहीं समझे, वह उसका पुरुषार्थ ? 1 दादाश्री : इतनी ही आपकी ज़िम्मेदारी है कि आप उसे समझा सकते हो। फिर वह नहीं समझे तो उसका उपाय नहीं है । फिर आपको इतना कहना है कि ‘दादा भगवान! इनको सद्बुद्धि देना ।' इतना कहना पड़ेगा। कुछ उसे ऊपर नहीं लटका सकते, गप्प नहीं है। यह 'दादा' के एडजस्टमेन्ट का विज्ञान है, आश्चर्यकारी एडजस्टमेन्ट है यह । और जहाँ एडजस्ट नहीं हो पाए, वहाँ उसका स्वाद तो आता ही रहेगा न आपको ? यह डिसएडजस्टमेन्ट ही मूर्खता है । क्योंकि वह जाने कि अपना स्वामित्व मैं छोडूंगा नहीं, और मेरा ही चलण रहना चाहिए। तो सारी जिंदगी भूखा मरेगा और एक दिन ‘पोइज़न' पड़ेगा थाली में । सहज चलता है, उसे चलने दो न! यह तो कलियुग है ! वातावरण ही कैसा है? इसलिए बीवी कहे कि आप नालायक हो, तो कहना 'बहुत अच्छा।' प्रश्नकर्ता : हमें बीवी 'नालायक' कहे, वह तो उकसाया हो ऐसा लगता है। दादाश्री : तो फिर आपको क्या उपाय करना चाहिए? तू दो बार नालायक है, उसे ऐसा कहना है ? और उससे कुछ आपकी नालायकी मिट गई? आप पर मुहर लगी, मतलब आप दो बार मुहर लगाएँगे? फिर नाश्ता बिगड़ेगा, सारा दिन बिगड़ेगा । प्रश्नकर्ता : एडजस्टमेन्ट की बात है, उसके पीछे भाव क्या है फिर कहाँ पहुँचना है? दादाश्री : भाव शांति का है, शांति का हेतु है । अशांति पैदा नहीं करने का युक्ति है। 'ज्ञानी' के पास से एडजस्टमेन्ट सीखें एक भाई थे। वे रात को दो बजे न जाने क्या-क्या करके घर आते
SR No.030015
Book TitleAptavani Shreni 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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