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________________ १८८ आप्तवाणी-३ मत सीखना। वह तो अज्ञानदशा में सहन करने का होता है। अपने यहाँ तो विश्लेषण कर देना है कि इसका परिणाम क्या, उसका परिणाम क्या, खाते में अच्छी तरह से देख लेना चाहिए, कोई वस्तु खाते की बाहर की नहीं होती। हिसाब चुके या 'कॉज़ेज़' पड़े? प्रश्नकर्ता : नया लेन-देन न हो वह किस तरह होगा? दादाश्री : नया लेन-देन किसे कहते हैं? कॉज़ेज़ को नया लेनदेन कहते हैं, यह तो इफेक्ट ही है सिर्फ! यहाँ जो-जो होता है वह सब इफेक्ट ही है और कॉज़ेज़ अदर्शनीय है। इन्द्रियों से कॉज़ेज़ दिखते नहीं है, जो दिखते हैं वे सब इफेक्ट है। इसलिए हमें समझना चाहिए कि हिसाब चुक गया। नया जो होता है, वह तो अंदर हो रहा है, वह अभी नहीं दिखेगा, वह तो जब परिणाम आएगा तब। अभी वह तो हिसाब में नहीं लिखा गया है, अभी तो कच्चे हिसाब में से अभी तो बहीखाते में आएगा। प्रश्नकर्ता : पिछलीवाली पक्की बही का हिसाब अभी आता है? दादाश्री : हाँ। प्रश्नकर्ता : यह टकराव होता है, वह 'व्यवस्थित' के आधार पर ही होता होगा न? दादाश्री : हाँ, टकराव है वह 'व्यवस्थित' के आधार पर है, परंतु ऐसा कब कहलाएगा? टकराव हो जाने के बाद। 'मुझे टकराव नहीं करना है', ऐसा आपका निश्चय है और सामने खंभा दिखे, तब फिर आप समझ जाते हो कि खंभा आ रहा है, घूमकर जाना पड़ेगा, टकराना तो नहीं है। लेकिन इसके बावजूद भी टकरा गए, तो कहना चाहिए कि व्यवस्थित है। पहले से ही 'व्यवस्थित है' ऐसा मानकर चलोगे, तब तो 'व्यवस्थित' का दुरुपयोग हुआ कहलाएगा। 'न्याय स्वरूप', वहाँ उपाय तप प्रश्नकर्ता : टकराव टालने की, समभाव से निकाल करने की
SR No.030015
Book TitleAptavani Shreni 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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