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________________ आप्तवाणी - ३ बिलीफ़ अभी तक गई नहीं है । 'कोई मुझे धौल मारे तो मुझे दुःख होगा', उस लेवल से देखना चाहिए। किसीको धौल मारते समय मन में आना चाहिए कि 'मुझे कोई धौल मारे तो क्या होगा?' १५९ आप किसी के पास से दस हज़ार रुपये उधार ले आओ, फिर आपके संजोग पलट गए, तो मन में विचार आए कि पैसे वापस नहीं दूँ तो क्या होनेवाला है? उस घड़ी आपको न्यायपूर्वक जाँच करनी चाहिए कि ‘मेरे यहाँ से कोई पैसे ले गया हो और मुझे वापस न दे तो मुझे क्या होगा?' ऐसी न्यायबुद्धि चाहिए। ऐसा हो तो मुझे बहुत ही दुःख होगा । इसी प्रकार सामनेवाले को भी दुःख होगा । इसलिए मुझे पैसे वापस देने ही हैं । ' ऐसा निश्चित करना चाहिए और ऐसा निश्चित करोगे तो फिर दे सकोगे। प्रश्नकर्ता : मन में ऐसा होता है कि ये दस करोड़ का आसामी है, तो हम उसे दस हज़ार नहीं दें तो उसे कोई तकलीफ़ नहीं होगी। दादाश्री : उसे तकलीफ़ नहीं होगी, ऐसा आपको भले ही लगता हो, लेकिन वैसा है नहीं । वह करोड़पति, उसके बेटे के लिए एक रुपये की वस्तु लानी हो तब भी सोच-समझकर लाता है । किसी करोड़पति के घर आपने पैसे इधर-उधर रखे हुए देखे हैं? पैसा हरएक को जान की तरह प्यारा होता है। अपने भाव ऐसे होने चाहिए कि इस जगत् में अपने मन-वचनकाया से किसी जीव को किंचित् मात्र दुःख न हो। प्रश्नकर्ता : लेकिन उस तरह से अनुसरण करना सामान्य मनुष्य को मुश्किल लगता है न? दादाश्री : मैं आपको आज ही उस प्रकार का वर्तन करने को नहीं कहता हूँ। मात्र भावना ही करने को कहता हूँ । भावना अर्थात् आपका निश्चय।
SR No.030015
Book TitleAptavani Shreni 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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