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आप्तवाणी-३
तीन, चार-चार दिन तक सो ही नहीं पाते, क्योंकि लूटपाट ही की है, जिस-तिस की।
प्रश्नकर्ता : परोपकारी मनुष्य लोगों के भले के लिए कहे, तो भी लोग वह समझने के लिए तैयार ही नहीं हैं, उसका क्या?
दादाश्री : ऐसा है कि यदि परोपकार करनेवाला सामनेवाले की समझ देखे तो वह वकालत कहलाती है। इसलिए सामनेवाले की समझ देखनी ही नहीं चाहिए। यह आम का पेड़ है, वह फल देता है। तब वह आम का पेड़ अपने कितने आम खाता होगा?
प्रश्नकर्ता : एक भी नहीं। दादाश्री : तो वे सारे आम किसके लिए हैं? प्रश्नकर्ता : दूसरों के लिए।
दादाश्री : हाँ, तब वह आम का पेड़ देखता है कि यह बुरा है या भला है, ऐसा देखता है? जो आकर ले जाए, उसके वे आम, मेरे नहीं। परोपकारी जीवन तो वह जीता है।
प्रश्नकर्ता : लेकिन जो उपकार करे, उसके ऊपर ही लोग दोषारोपण करते हैं, फिर भी उपकार करना चाहिए?
दादाश्री : हाँ, वही देखना है न! अपकार पर उपकार करे वही सच्चा है। ऐसी समझ लोग कहाँ से लाएँ? ऐसी समझ हो तब तो फिर काम ही हो गया! परोपकारी की तो बहुत ऊँची स्थिति है, यही सारे मनुष्य जीवन का ध्येय है। और हिन्दुस्तान में दूसरा ध्येय, अंतिम ध्येय मोक्षप्राप्ति का है।
प्रश्नकर्ता : परोपकार के साथ 'इगोइज़म' की संगति होती है?
दादाश्री : हमेशा जो परोपकार करता है, उसका 'इगोइज़म' नॉर्मल ही होता है, उसका वास्तविक 'इगोइज़म' होता है और जो कोर्ट में डेढ़ सौ रुपये फ़ीस लेकर दूसरों का काम करें, उनका 'इगोइज़म' बहुत बढ़ा