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आप्तवाणी-३
दादाश्री : ये पेड़-पौधे तो मनुष्यों को फल देने के लिए मनुष्यों की सेवा में हैं। अब पेड़ों को क्या मिलता है? उनकी ऊर्ध्वगति होती है और मनुष्य आगे बढ़ते हैं, उनकी हेल्प लेकर! ऐसा मानो न कि, आपने आम खाया, उससे आम के पेड़ का क्या गया? और आपको क्या मिला? आपने आम खाया, इसलिए आपको आनंद हुआ। उससे आपकी वृत्तियाँ जो बदलीं, उससे आप सौ रुपये जितना अध्यात्म में कमाते हो। अब आम खाया, इसलिए उसमें से पाँच प्रतिशत आम के पेड़ को आपके हिस्से में से जाता है और पँचानवे प्रतिशत आपके हिस्से में रहता है। यानी वे पेड़ आपके हिस्से में से पाँच प्रतिशत ले लेते हैं और वे बेचारे ऊर्ध्वगति में जाते हैं और आपकी अधोगति नहीं होती, आप भी आगे बढ़ते हो। इसलिए ये पेड़ कहते हैं कि 'हमारा सबकुछ भोगो, हरएक प्रकार के फलफूल भोगो।'
इसलिए, यह संसार यदि आपको पुसाता हो, संसार आपको पसंद हो, संसार की चीज़ों की इच्छा हो, संसार के विषयों की वांछना हो तो इतना करो, 'योग-उपयोग परोपकाराय।' योग यानी इस मन-वचन-काया का योग, और उपयोग यानी बुद्धि का उपयोग, मन का उपयोग करना, चित्त का उपयोग करना, इन सभी का दूसरों के लिए उपयोग करना और अगर दूसरों के लिए नहीं खर्च करते, फिर भी लोग आख़िर में घरवालों के लिए भी खर्च तो करते हैं न? इस कुतिया को खाने का क्यों मिलता है? जिन बच्चों के भीतर भगवान रहते हैं, उन बच्चों की वह सेवा करती है। इसलिए उसे सब मिल जाता है। इस आधार पर सारा संसार चल रहा है। इस पेड़ को खुराक कहाँ से मिलती है? इन पेड़ों ने कोई पुरुषार्थ किया है? वे तो ज़रा भी 'इमोशनल' नहीं हैं। वे कभी 'इमोशनल' होते हैं? वे तो कभी आगे-पीछे होते ही नहीं। उन्हें कभी ऐसा होता नहीं कि यहाँ से एक मील दूर विश्वामित्री नदी है, तो वहाँ जाकर पानी पी आऊँ!
परोपकार, परिणाम में लाभ ही प्रश्नकर्ता : इस संसार में अच्छे कृत्य कौन-से कहलाते हैं? उसकी परिभाषा दी जा सकती है?