SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 139
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आप्तवाणी-३ जहाँ पर उपयोग देने की ज़रूरत नहीं है, जो उपयोग दिए बिना चल सके ऐसा है, वहाँ पर उपयोग देता है और जहाँ पर उपयोग देना है, उसकी ख़बर ही नहीं है। नींद अच्छी आई या नहीं आई, उसके लिए उपयोग देना हो तो क्या होगा? नींद आएगी ही नहीं। यह गाड़ी चल रही हो और कोई व्यक्ति डिब्बे में जल्दबाज़ी करे, वह डिब्बे में ऐसे दौड़े, तो वह जल्दी पहुँच सकेगा क्या? उसी प्रकार इस संसार में लोग भाग-दौड़ करते हैं ! जरा शांति रखो न! स्थिरता से देखो। प्रश्नकर्ता : स्थिर करना, उसीको उपयोग कहते हैं? दादाश्री : हाँ। आप मेरे साथ बातचीत कर रहे हों और आपका चित्त अन्य किसी जगह पर हो, तो वह उपयोग नहीं कहलाएगा। सेठ का शरीर यहाँ पर खा रहा हो और खुद गए हुए हों मिल में, चित्त का ठिकाना नहीं होता! बिना उपयोग के खाते हैं इसीलिए तो हार्टफेल और बल्ड प्रेशर होते हैं लोगों को! प्रश्नकर्ता : उपयोगपूर्वक भोजन करने का अर्थ क्या है? दादाश्री : कौर मुँह में रखने के बाद उसका स्वाद जाने, मेथी का स्वाद जाने, मिर्ची का स्वाद जाने, नमक, काली मिर्च, सभी का स्वाद जाने, उसे उपयोगपूर्वक भोजन करना कहते हैं। लोभी को लोभ का उपयोग रहा करता है, मानी को मान का उपयोग रहा करता है। संसारियों को ये दो प्रकार के बड़े उपयोग रहते हैं। मानी यदि विवाह में गया हो और मेज़बान जल्दबाजी में हाथ जोड़कर नमस्ते करना भूल गया तो उसका दिल बैठ जाता है। और इसे यह कर दूंगा, वह कर दूंगा, ऐसा करता है। उससे अंदर भयंकर अशुभ उपयोग हो जाता है। लोभी सब्जी लेने गया हो तो उसका उपयोग इसीमें होता है कि कौनसी ढेरी सस्ती है, वह सड़ी हुई ही ले आता है। विषयों में उपयोग कपट करने में ही रहा करता है।
SR No.030015
Book TitleAptavani Shreni 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy