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आप्तवाणी-३
प्रश्नकर्ता : आत्मा की अनंत शक्तियाँ हैं, वे क्या देह के कारण हैं ? दादाश्री : देह के कारण तो नाशवंत शक्तियाँ हाज़िर होती हैं । प्रश्नकर्ता : मोक्ष में भी अनंत शक्तियाँ हैं ?
दादाश्री : हाँ। सभी शक्तियाँ हैं, लेकिन वहाँ उनका उपयोग नहीं करना है। मोक्ष में जाते हुए अनंत अंतराय हैं, अतः मोक्ष में जाने के लिए, उनके सामने अनंत शक्तियाँ हैं ।
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प्रश्नकर्ता : आत्मा की अनंत शक्तियों का उपयोग किस तरह से होता है? ज्ञाता-दृष्टा रहने में ही?
दादाश्री : ज्ञाता-दृष्टापन, वह मूल वस्तु है । वह आ जाएगा तो सभी शक्तियाँ उत्पन्न हो जाएँगी। उसके साथ 'हम' 'जोइन्ट' कर दें तो वे सभी शक्तियाँ ऑटोमेटिकली प्राप्त हो जाएँगी।
आत्मा की अनंत शक्तियाँ हैं, उनका यदि उल्टा उपयोग हो तो ऐसा भी कर डाले और सीधा उपयोग हो तो असीम आनंद उत्पन्न होगा । उल्टा उपयोग हुआ, उसीसे तो यह पूरा जगत् उत्पन्न हो गया है ! सिद्ध भगवानों को तो निरंतर ज्ञाता-दृष्टा और परमानंद, उसमें ही निरंतर रहना है। उन्हें ग़ज़ब का सुख बर्तता है ।
प्रश्नकर्ता : इसका मतलब क्या यह हुआ कि ये जो अनंत शक्तियाँ हैं, मोक्ष में जाते हुए उनका खुद के स्वभाव में रहने के लिए ही उपयोग करना है?
दादाश्री : इन उल्टी शक्तियों से संसार उत्पन्न हो गया है। अब सीधी शक्ति इतनी अधिक हैं कि जो सभी विघ्न तोड़ डाले । इसीलिए तो हम वह वाक्य बुलवाते हैं, 'मोक्ष में जाते हुए विघ्न अनंत प्रकार के होने से उनके सामने मैं अनंत शक्तिवाला हूँ ।' ज्ञाता-दृष्टा रहने से तमाम विघ्नों का नाश हो जाता है।
प्रश्नकर्ता : आत्मशक्तियाँ कब प्रकट होती है ?
दादाश्री : खुद अनंत शक्तिवाला ही है ! आत्मा होकर 'मैं अनंत