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आप्तवाणी-३
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से रही हुई हैं। अंदर सुंदर, सुरम्य शक्तियाँ हैं ! ग़ज़ब की शक्तियाँ हैं, उन्हें रखकर बाहर से कुरूप शक्तियाँ मोल लाए। स्वभावकृत शक्तियाँ कितनी सुंदर हैं! और ये विकृत शक्तियाँ बाहर से मोल लाए! अंदर दृष्टि पड़ी ही नहीं। आत्मा प्राप्त होने पर वे शक्तियाँ व्यक्त होने लगती है।
आत्मशक्तियों को तो आत्मवीर्य कहा जाता हैं। आत्मवीर्य कम हो तो उसमें कमज़ोरी उत्पन्न होती है। क्रोध-मान-माया-लोभ उत्पन्न हो जाते हैं, अहंकार के कारण आत्मवीर्य टूट जाता है, तो जैसे-जैसे अहंकार का विलय होता है वैसे-वैसे आत्मवीर्य उत्पन्न होता जाता है। जब-जब ऐसा लगे कि आत्मवीर्य कम हो रहा है, तब पच्चीस-पच्चीस बार ऊँची आवाज़ में बोलना कि 'मैं अनंत शक्तिवाला हूँ' तो शक्ति उत्पन्न होगी।
प्रश्नकर्ता : 'मैं अनंत शक्तिवाला हूँ' ऐसा बोलते हैं, लेकिन सिद्ध भगवानों के लिए वह शक्ति कौन-सी है?
दादाश्री : यह तो जब तक वाणी है तभी तक 'मैं अनंत शक्तिवाला हूँ' ऐसा बोलने की ज़रूरत है और मोक्ष में जाते हुए विघ्न अनंत प्रकार के हैं, इसलिए उनके सामने हम अनंत शक्तिवाले हैं, बाद में कुछ बाकी नहीं रहता। वाणी और विघ्न हैं, तभी तक बोलने की ज़रूरत है।
प्रश्नकर्ता : आत्मा के मोक्ष में जाने के बाद में, ज्ञाता-दृष्टा के अलावा अन्य कौन-सी शक्ति है?
दादाश्री : अन्य कई शक्तियाँ हैं। खुद की शक्ति से वह यह सब पार कर लेता है। उसके बाद मोक्ष में जाने के बाद उन सभी शक्तियों का स्टॉक रहता है। आज भी वे सभी शक्तियाँ हैं, लेकिन जितनी काम में आएँ, उतना सही।
प्रश्नकर्ता : मोक्ष में जाने के बाद वे शक्तियाँ औरों के काम नहीं आतीं न?
दादाश्री : बाद में फिर किस में उपयोग करना है? और वहाँ पर किसलिए उपयोग करना है? खुद को अन्य कोई परेशानी नहीं आए, वैसी सेफसाइड रहती है।