SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 114
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आप्तवाणी-३ ६५ दादाश्री : नहीं, आकाश में क्या दिखता है? आत्मा का तो प्रकाश अलग ही प्रकार का है और वे परमाणु अलग प्रकार के हैं। परमाणु तो, कितने सारे इकट्ठे हो जाएँ, तब जाकर वस्तु दिखती है। यह शरीर मनवचन-काया, अंत:करण सबकुछ परमाणु से बना हुआ है, जब कि आत्मा एक ही वस्तु है। प्रश्नकर्ता : तत्व के रूप में आत्मा प्रकाश का बना हुआ है? दादाश्री : प्रकाश जैसा है उसका स्वभाव! प्रश्नकर्ता : आपका ज्ञान का वाक्य है "द्रव्य, गुण, पर्याय से शुद्धचेतन संपूर्ण शुद्ध है, सर्वांग शुद्ध है", तो आत्मा कौन-से पर्यायों से शुद्ध है? ज्ञान-दर्शन के पर्याय से? । दादाश्री : ज्ञान-दर्शन तो उसके गुण कहलाते हैं। आम देखते ही ज्ञान आम के आकार का हो जाता है। जैसा ज्ञेय का आकार होता है, वैसा ही ज्ञान हो जाता है। जगत् के लोगों को वे ज्ञान पर्याय चिपक पड़ते हैं और अशुद्धि हो जाती है। हम लोगों (ज्ञान प्राप्त महात्मा) को ये चिपक नहीं पड़ते। वापस वहाँ से उखड़कर दूसरी तरफ चला जाता है। जहाँ देखे, वहाँ पर तन्मयाकार नहीं हो जाता। प्रश्नकर्ता : उसे आम के आकार का कहा, तो वह ज्ञान-दर्शन के पर्याय हुआ न? दादाश्री : नहीं। ज्ञान-दर्शन तो गुण है। और पर्याय, उसे स्थूल भाषा में समझना हो, तो अवस्था कह सकते हैं। जो भी वस्तु होती है, पर्याय से वह उसीके आकारवाला ज्ञेयाकार बन जाता है। द्रश्यकार नहीं होता, क्योंकि दर्शन सामान्य भाव से है, जब कि ज्ञान विशेषभाव से है, इसीलिए ज्ञेय अलग-अलग होते हैं। प्रश्नकर्ता : 'द्रव्य, गुण, पर्याय से मैं संपूर्ण शुद्ध हूँ, सर्वांग शुद्ध हूँ', वह शुद्धात्मा की दृष्टि से या प्रतिष्ठित आत्मा की दृष्टि से? दादाश्री : शुद्धात्मा की दृष्टि से।
SR No.030015
Book TitleAptavani Shreni 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy