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________________ आप्तवाणी-३ है, इसलिए अधोगति में जाता है। पुद्गल का स्वभाव अधोगामी है और आत्मा का स्वभाव ऊर्ध्वगामी है। सिद्धात्मा की स्थिति सिद्ध भगवंत खुद के संपूर्ण सिद्धांत को प्राप्त करके सिद्ध क्षेत्र में खुद के पुद्गलरहित स्व-स्वरूप में विराजमान हैं। प्रश्नकर्ता : मुक्त होने के बाद में आत्मा की अवस्था क्या होती है? वह कहाँ पर जाता है? क्या करता है? उसे कैसे अनुभव होते हैं? दादाश्री : पहले अज्ञान से मुक्ति होती है, उसके बाद बाकी बची हुई दफाओं का हिसाब पूरा होता है। इन मन-वचन-काया का संपूर्ण निकाल हो जाए तो वह संपूर्ण आत्म स्वरूप हो जाता है। मोक्ष में जाने के लिए अन्य किसी कारण की आवश्यकता नहीं है। पहले के जो डिस्चार्ज कर्म हैं, वे ही उसे सिद्धगति में बैठा देते हैं। वहाँ पर खुद के आत्मा स्वभाव में ही, ज्ञाता-दृष्टा और परमानंद में ही रहते हैं। उन्हें यह पूरा जगत् दिखता रहता है कि क्या-क्या हो रहा है, अंदर ग़ज़ब का सुख बर्तता है! वहाँ का एक सेकन्ड का सुख यहाँ पर आ जाए तो पूरे जगत् के लिए वह ६ महीनों तक चलेगा! लोगों ने तो उस सुख की बूंद तक भी नहीं देखी है। प्रश्नकर्ता : सिद्धशिला क्या है? दादाश्री : वह एक क्षेत्र है। जहाँ पर ज्ञेय नहीं हैं, संयोग मात्र नहीं हैं। जो लोकालोक स्वरूप है, उसमें लोक, जिसमें की सभी तत्व हैं और अलोक, जिसमें कि सिर्फ आकाश तत्व ही है। लोक और अलोक उन दोनों के संधि स्थान पर सिद्धक्षेत्र है। वहाँ पर सभी सिद्धात्मा स्वतंत्र प्रकार से अलग-अलग विराजमान रहते हैं। प्रश्नकर्ता : सिद्धात्मा वहाँ पर क्या करते हैं? दादाश्री : कुछ भी नहीं, उनका करने का स्वभाव ही नहीं है। खुद के परमात्मा पद में ही रहते हैं। सिद्धक्षेत्र में बैठे हुए आत्माओं को ज्ञान एक ही प्रकार का दिखता है। यह हाथ मैं ऊँचा करूँ तो वह उन्हें दिखता है। ज्ञान सर्वस्व प्रकाश करे वैसा है। उसे ज्ञान किसलिए कहते हैं? क्योंकि
SR No.030015
Book TitleAptavani Shreni 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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