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________________ अक्रममार्ग : ग्यारहवाँ आश्चर्य! मोक्षप्राप्ति के लिए दो मार्ग हैं: प्रथम 'क्रमिक मार्ग। उसमें क्रमपूर्वक त्याग करते-करते आगे बढ़ना है, सीढ़ी दर सीढ़ी ऊपर चढ़ना है। दूसरा है 'अक्रम मार्ग'। यह दस लाख सालों में प्रकट होता है, जो वर्ल्ड का आश्चर्य है! लिफ्ट में बैठकर मोक्ष में जा सकते हैं। उसमें ग्रहण या त्याग कुछ भी नहीं होता। वह बिना मेहनत का मोक्षमार्ग है, लिफ्ट मार्ग है। जो महापुण्यशाली हों, उनके लिए 'यह' मार्ग है। वहाँ पर तो ज्ञानी मुहर लगाएँ और मोक्ष हो जाता है। यह तो नक़द मार्ग है, उधार कुछ भी नहीं रखते। नक़द चाहिए, वैसा 'यह' नक़द मार्ग प्रकट हुआ है। दिस इज़ द ऑन्ली केश बैंक इन द वर्ल्ड। 'क्रमिक मार्ग में सत्संग मिला हो तो पाँच सौ सीढ़ियाँ चढ़ जाता है और एकाध कुसंग से हज़ार सीढ़ियाँ उतर भी पड़ता है। उसमें ठिकाना नहीं है, अत्यंत कष्ट पड़ते हैं और यह 'अक्रम मार्ग तो सेफसाइड मार्ग, लिफ्ट में से गिरने का भय ही नहीं है और संसार में रहकर मोक्ष में जाया जा सकता हैं। चक्रवर्ती भरत राजा गए थे उस तरह से, लड़ाइयाँ लड़ते हुए, राज्य भोगते हुए मोक्ष! ऋषभदेव दादा भगवान के सौ पुत्र, उनमें से निन्यानवे को उन्होंने दीक्षा देकर मोक्ष दिया था। सबसे बड़े पुत्र, वे भरत चक्रवर्ती। उन्हें राज्य चलाने के लिए सौंपा। भरत राजा तो लड़ाइयाँ लड़ते-लड़ते और महल में तेरह सौ रानियों से ऊब गए। वे भगवान के पास गए और उन्होंने भी दीक्षा माँगी और मोक्ष माँगा। भगवान ने कहा कि, "यदि तू भी राजपाट छोड़ देगा तो फिर राज्य कौन सँभालेगा? इसलिए तुझे तो राज्य सँभालना पड़ेगा, लेकिन साथ-साथ मैं तुझे ऐसा 'अक्रमज्ञान' दूंगा कि लड़ाइयाँ लड़ते
SR No.030014
Book TitleAptavani Shreni 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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