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________________ ४८ आप्तवाणी-२ वीतराग भगवान की मूर्ति क्या कहती है? यदि तुझे मोक्ष में जाना हो तो इस एक जन्म के लिए हाथ-पैर समेटकर बैठे रहना यानी कि, मशीनरी बंद करके बैठा रहना फिर भी तेरा सबकुछ चले ऐसा है! मूर्ति में देखने जैसा क्या है? क्या पत्थर देखने जैसा है? आँखे देखने जैसी हैं? यह तो आंतरिक भाव बैठाने के लिए हैं कि यह भगवान महावीर की मूर्ति है! कैसे थे भगवान महावीर! कैसे वीतरागी! अभी तो अब आंतरिक भाव नहीं हो पाते, इसलिए फिर मूर्ति पर आँगी की! उस सुंदर आँगी से चित्त एकाग्र होता है, और फिर भी चित्त एकाग्र नहीं हो तो घंटे बजाते हैं ताकि बाहर से गीत आ रहे हों या झगड़ा हो रहा हो, फिर भी चित्त वहाँ पर नहीं जाए। और फिर धूप जलाते हैं, उस सुगंध में तन्मयाकार रहते हैं। यह तो किसी भी रास्ते पाँच इन्द्रियों को यहाँ एकाग्र रखते हैं। जिससे कि सेकन्ड के छोटे से छोटे भाग में भी एकाग्र रहे, तब भी उतना तो कमाया न! यह तो क्या कि ज़रा कहासुनी हो जाए, अरे कोई धूल उड़ाए तो भी लोग इकट्ठे हो जाते हैं ! किसलिए? कहीं भी चित्त एकाग्र नहीं होता है, इसलिए जब कुछ नया देखने जैसा मिले तो चित्त एकाग्र होता है। यह तो भगवान की मूर्ति के पास भी चित्त एकाग्र नहीं हो पाता तो और कहाँ पर चित्त एकाग्र होगा? अंदर अत्यंत जलन है। इसलिए कहीं भी एकाग्रता नहीं हो पाती। यह तो, अड़ियल घोड़े के पास बंदूकची पटाखा फोड़ता है, लोग वैसे हो गए हैं! करुणा रखने लायक लोग हैं। इसलिए सिर्फ करुणा रखने जैसा है! प्रतिमा में प्राण डालें ज्ञानी प्रश्नकर्ता : मंदिरों में मूर्तियों में प्राणप्रतिष्ठा की जाए तो क्या मूर्तियों की शक्ति बढ़ जाती है? दादाश्री : हाँ, बढ़ती है न। हुक्के में प्राणप्रतिष्ठा करूँ, तब उसमें भी शक्ति बढ़ जाए और मूर्ति में तो एक सभी लोगों के आरोपित भाव हैं। वहाँ प्राणप्रतिष्ठा करने से फल देती है। लेकिन इस काल में सच्ची प्राणप्रतिष्ठा होती
SR No.030014
Book TitleAptavani Shreni 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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