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________________ मूर्तिधर्म : अमूर्तधर्म ४७ वह हर कहीं पर मार खाता है ! बाकी कबीर जी जैसा भगत तो कोई हुआ ही नहीं! बहुत सुंदर में सुंदर! जिसने जगत् की स्पृहा ही छोड़ दी थी। जगत् के किसी विषय की स्पृहा उन्हें नहीं थी, ऐसे निस्पृह हो गए थे। अंग्रेज शांति से चर्च में खड़े रहते हैं, वह करेक्ट है। मुस्लिम अज़ान देते हैं, वह भी करेक्ट है और हिन्दू मन में धीरे-धीरे बोलते हैं, वह भी करेक्ट है। कोई हिन्दू ज़रा जोर से बोल रहा हो या बिल्कुल नहीं बोल रहा हो, जड़ जैसा हो उसे कहना कि, 'ज़रा जोर से बोलना।' ज़रा जड़वत् जैसा हो तो उसे कहना कि, 'अरे! नवकार मंत्र मन में क्या गाता रहता है? बोल ज़ोर से ताकि यहाँ पर आवाज़ हो, भीतर घंट बजें ऐसा बोल।' यानी हर एक की दवाई अलग-अलग होती है। मनुष्य मात्र को अलग-अलग रोग होते हैं, उनकी अलग-अलग दवाइयाँ होती हैं। जीव मात्र को अलग-अलग रोग होते हैं। अब आप कहो कि इन सभी को उल्टी की दवाई दे दो दादा, तो क्या होगा?! यानी यह जगत् ऐसा है, इसलिए भगवान ने अनेकांत रखा हुआ है, स्यादवाद, ताकि किसी जीव के साथ मतभेद ही नहीं। प्रश्नकर्ता : मंदिर में घंट रखने का अर्थ क्या है? दादाश्री : मूर्ति को घंट की कोई ज़रूरत ही नहीं है। दर्शन करने आनेवाले का चित्त एकाग्र हो, उसके लिए घंट है। बाहर का कोलाहल सुनाई न दे। धूप, अगरबत्ती, वगैरह भी, एकचित्त, एकध्यान हो जाए, उसके लिए होता है। जिनमुद्रा वीतराग क्या कहते हैं? हम कुछ भी स्वीकार नहीं करते हैं और तू जो देगा वह तुझे रिटर्न विथ थेन्क्स । तू चार आने डालेगा तो तुझे अनेक गुना मिलेगा। फूल चढ़ाएगा तो अनेक गुना फूल मिलेंगे और गालियाँ देगा तो वे भी तुझे अनेक गुना मिलेंगी। एक बार वीतराग के लिए मन-वचनकाया की एकता से खर्च करके तो देख! इन वीतरागों की ही ऐसी मूर्ति होती है, और किसी की ऐसी मूर्ति देखी है? यह तो वीतराग मुद्रा कहलाती है! जैसी जिनकी मूर्ति, वैसा उनका डेवेलपमेन्ट ।
SR No.030014
Book TitleAptavani Shreni 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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