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________________ संसार स्वरूप : वैराग्य स्वरूप पेड़ के नीचेवाली? और फिर वह सोचने लगा कि किसी और की लूँगा तो सब मुझे पागल कहेंगे। इसलिए उसने एक उपाय ढूँढ निकाला। एक बड़ा पत्थर लिया और ज़ोर से बोलने लगा, 'मैं मेरी हाँडी फोड़ रहा हूँ, सब अपनी-अपनी सँभालो,' तब तुरंत सबने अपनी-अपनी हाँडी पकड़ ली और उसे उसकी हाँडी मिल गई! ये तो अपनी हाँडी सँभालकर चलने जैसा है। ये तो नाव में इकट्ठे हुए लोग हैं, वे तो, जब उनका किनारा आएगा तब उतर पड़ेंगे। और यह तो कहेगा कि, 'मुझे उसके बगैर नहीं चलेगा।' 'उसके बगैर नहीं चलेगा,' ऐसा कैसे चलेगा? यह तो ऋणानुबंध है। ऐसा तो कब तक चलेगा? यह क्या दख़ल? नहीं लेना, नहीं देना, चुटकीभर खाना और पूरे गाँव को सिर पर लेकर फिरना और पैर दुःखे तो कोई देखने भी नहीं आता। अकेले अपने आप ही सहलाते रहना पड़ता है। क्या आप नहीं जानते थे कि यह सब रिलेटिव सगाई है? रियल हो, तब तो हम सबकुछ कर लें। लेकिन यह तो रिलेटिव संबंध, वह कब फ्रैक्चर हो जाए, उसका कोई ठिकाना नहीं। यदि रियल सगाई हो तो बाप मरे, माँ मरे तो बेटा साथ में मर ही जाए। इस मुंबई शहर में ऐसा कोई मरता है? ना, कोई नहीं मरता। तब फिर हम पहले से ही नहीं जान लें कि यह रिलेटिव संबंध हैं? और रिलेटिव संबंध में खेंच नहीं रखनी चाहिए। रियल हो तब तो हम ही पकडकर बैठे रहें लेकिन जो घडीभर में फ्रैक्चर हो जाए, ऐसी सगाई में क्या ज़िद पकड़नी? इसलिए पहले से ही जान लेना कि यह तो रिलेटिव है और फिर 'मैं मेरी फोड़ता हूँ,' करना है। जिसका विनाश हो जाए, उन्हें कपड़े कहते हैं। ये कपड़े दूसरे दिन निकाल देते हैं और वे कपड़े' साठ साल में निकालते हैं। यह तो कपड़ों में 'मैं पन' माना, उसके दुःख हैं। खुद को खुद का 'ज्ञान' नहीं हुआ इसलिए पराई चीज़ों में भटका। 'मैं चंदूलाल हूँ' मानकर इस चंदूलाल के नाम पर व्यापार होता है और अंतिम स्टेशन पर खुद जाता है और चंदूलाल यहीं रह जाता है ! और गुत्थियाँ साथ में ले जाता है ! आत्मा की प्राप्ति का मार्ग अत्यंत दुर्लभ मार्ग है!
SR No.030014
Book TitleAptavani Shreni 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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