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________________ आप्तवाणी-२ अब बूढ़े हो गए तो बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगता, लेकिन करें क्या? यह तो इन्डिया है! आम ताज़ा हो तो अंग-उपांग सुंदर होते हैं, लेकिन झुर्रियाँ पड़ने के बाद कैसे दिखते हैं? अबुध को ऐसी चल जाए, लेकिन बद्धिवाले की क्या दशा हो? यह तो सिर्फ फँसाव है! शादी के समय तो उसे 'वह' अच्छी लगती है, लेकिन फिर झुर्रियाँ पड़े तो अच्छी नहीं लगती, लेकिन यह तो इन्डिया है, इसलिए निभाना पड़ता है! इस देह का कैसा है? बचपन में जितनी खुशियाँ देती थी, उतना ही अभी बुढ़ापे में परेशान करती है। कहलाता क्या है कि यह देह मेरी खुद की है, लेकिन खुद की होकर दुःख देती है। दाँत को रोज़ चमकाते हैं, रोज़ मालिश करते हैं, फिर भी वे दु:खते हैं! ये आँखें दुःख देती हैं, कान दु:ख देते हैं, सभी दुःख देते हैं। जो खुद का है वही दुःख देता है, ऐसा है यह संसार है! __ सब सबकी सँभालो यह तो भारी फँसाववाला जगत् है, और उसमें तिलभर भी खुद का नहीं है। अपना घर हो तो उसका किराया दें तो खुद का, मेरा घर हो जाता है। इस घर में अगर चिड़िया रह रही हो तो क्या वह जानती है कि इस भाई की मालिकी का घर है?' नहीं, वह तो खुद रहती है, इसलिए उसी की मालिकी की जगह है। यह तो, अगर घर में छिपकली रह रही हो तो वह भी समझती है कि मैं मेरी मालिकी की जगह में रह रही हूँ। यह तो हर किसी की मालिकी का जगत् है। भगवान ने क्या कहा कि, 'सब सबकी सँभालो, मैं मेरी फोड़ता हूँ!' एक आदमियों का टोला था। वे अपनी-अपनी खिचड़ी पकाकर खाते थे। ये सभी आदमी, एक मैदान में रुके थे। सबने अपनी-अपनी खिचड़ी तीन पत्थर रखकर हाँडी में रखी। फिर सब गाँव में व्यापार करने गए। एक आदमी को ध्यान रखने के लिए छोड़कर गए। फिर शाम को वापस आए। उसमें से एक को क्या हुआ कि उसे खुद की हाँडी मिली ही नहीं। उसे चिंता हुई कि मेरी यह है या वह है? इस पेड़ के नीचेवाली या उस
SR No.030014
Book TitleAptavani Shreni 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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