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________________ आप्तवाणी-२ 1 है, और सभी दोषों के खत्म होने के बाद, मोक्ष होगा ! ज्ञान मिलने के बाद चंदूभाई और आप 'खुद' जुदा हो जाते हो, फिर प्रज्ञा से चंदूभाई के दोष दिखते जाते हैं । जितने दोष दिखें, उतने चले जाते हैं । ज्ञान नहीं था, तब निरे दोष ही ग्रहण हो रहे थे, नहीं डालने होते, फिर भी घुस जाते थे। अब ज्ञान के बाद दोष छूटते जाते हैं और जितने दोषों ने विदाई ली, आप उतने वीतराग होते जाते हैं ! अंत में परमात्म स्वरूप हो जाना चाहिए, लेकिन आत्मस्वरूप हुए बिना सच्ची समझशक्ति नहीं आती। वीतराग आत्मस्वरूप हो चुके थे और इसलिए समझ-बूझकर दोषों का निकाल किया और मोक्ष में गए ! ३९० केवलज्ञान के अंश के भाग को प्रज्ञा कहते हैं। एक-एक आत्मा में पूरे ब्रह्मांड को प्रकाशित करने की शक्ति है ! इस खोखे में से निरावरण होकर निकले तो एक- एक आत्मा में पूरे ब्रह्मांड को प्रकाशित करने की शक्ति है। इसलिए ही इन वेदांतियों ने कहा है न कि 'आत्मा सर्वव्यापी है।' लेकिन सर्वव्यापी, वह किस प्रकार से? आत्मा का प्रकाश पूर्णरूप से सर्वव्यापी है और उस संपूर्ण प्रकाश के होने के बाद आत्मा यहाँ पर किसलिए खिचड़ी खाने को बैठा रहेगा? फिर तो वह सिद्धक्षेत्र में चला जाता है। खुद अपने आपकी पूरे ब्रह्मांड को प्रकाशित करने की जो स्वसंवेदन शक्ति हैं, उसे केवलज्ञान कहते हैं । हमारे ज्ञान देने के बाद रात को जो अनुभव में आता है, वह स्वसंवेदन शक्ति है । देह है इसलिए उसके आधार पर स्वसंवेदन कहते हैं, नहीं तो वेदना ही नहीं है न! जो पराया है, उसे कभी भी खुद का नहीं मानने दे और खुद का है उसे कभी भी पराया नहीं मानने दे, वह प्रज्ञा ! सत्संग से प्रज्ञाशक्ति खिलती जाती है। किंचित् मात्र भी पराई चीज़ को खुद की नहीं माने तो वह परमात्मा ही है। 'खुद' के और 'पराये' को भिन्न रखने की श्रद्धा है, लेकिन वर्तन में नहीं है-वह प्रज्ञा है, ऐसी श्रद्धा ही प्रज्ञा है और ऐसा वर्तन ही आत्मा है, वही चारित्र है । वर्तन यानी आत्मा और अनात्मा को एकाकार नहीं होने दे, वह।
SR No.030014
Book TitleAptavani Shreni 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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