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________________ स्थितप्रज्ञ या स्थितअज्ञ? 'ज्ञानीपुरुष' से मिले बिना प्रज्ञा उत्पन्न हो ही नहीं सकती । प्रज्ञाधारी में ब्रह्मशक्ति उत्पन्न होने के बाद अज्ञाशक्ति का नाश होता है, उसके बाद प्रकृतिशक्ति सभी चला लेती है । ३८९ प्रज्ञाशक्ति का स्वभाव कैसा है ? कहीं से भी, जैसे-तैसे करके सभी संसारी व्यवहारों का हल लाते - लाते मोक्ष में ले जाना, ऐसा है । और अज्ञाशक्ति निरंतर क्या प्रयत्न करती है? वह संसार से बाहर नहीं जाने देती। इसमें आत्मा को कुछ भी नहीं करना पड़ता, अज्ञा या प्रज्ञा, वह खुद की शक्ति नहीं है, लेकिन साइन्टिफिक सरकमस्टेन्शियल एविडेन्स से खड़ी हो जाती है। ‘ज्ञानीपुरुष' का अंतिम संयोग मिले और ज्ञान प्राप्त हो जाए तब प्रज्ञा उत्पन्न हो जाती है और अंदर में वह निरंतर बार - बार सावधान करती है, तो हमें ऐसा होता है कि, 'यह नया कौन घुस गया है?' हम शुद्धात्मा देते हैं तब आपके भीतर प्रज्ञा को बैठा देते हैं । जैसे भरत राजा को हर पंद्रह मिनट में नौकर 'भरत चेत, भरत चेत' ऐसे सावधान करते थे, उसी तरह फिर यह प्रज्ञा आपको सावधान करती रहती है । लेकिन इस काल में जहाँ आप ही डेढ़ सौ रुपये की नौकरी करते हैं, वहाँ चौबीस घंटे के तीन नौकर कैसे रख पाओगे? इसलिए हम आपके भीतर ही चौबीस घंटे का नौकर बैठा देते हैं, वह प्रज्ञा ही आपको हर क्षण सावधान करती है। बाहर की कोई भी फाइल आ जाए तो प्रज्ञा हाज़िर हो ही जाती है। और ज्ञानवाक्य हाज़िर करके जागृत करवाती है और फाइल का समभाव से निकाल भी वही करवाती है । प्रज्ञा तो आत्मा का एक अंग है, वह आत्मा का और बाहर का संधान करवाती है। शुद्धात्मा तो शुद्ध ही है, लेकिन प्रज्ञा क्या करती है ? कि व्यवहार, व्यवहार में रहे और त्यौहार, त्यौहार में रहे और खुद को शुद्धात्मा में रखती है। प्रज्ञा तो निरंतर संसार में से निकालकर मोक्ष की तरफ ले जाती है। आत्मा के अनंत प्रदेश हैं, उन सभी पर आवरण हैं । आपको ज्ञान दिया है इसलिए प्रतिदिन जैसे-जैसे आवरण टूटते जाते हैं, वैसे-वैसे प्रकाश बढ़ता जाता है, दोष दिखते जाते हैं और जितने दोष दिखते हैं, उतने भाग जाते हैं । यह तो पूरा दोषों से भरा हुआ पुतला
SR No.030014
Book TitleAptavani Shreni 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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