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________________ योगेश्वर श्री कृष्ण ३८५ भी नहीं जाते, फल की आशा रखे बगैर कोई काम ही नहीं करता। चप्पल की आशा रखे बगैर मोची के वहाँ कौन जाता है? फल की आशा के बगैर तो कोई काम करता ही नहीं। यदि पता चले कि, 'आज बाज़ार में सब्जी नहीं मिलेगी,' तो कोई सब्जी लेने जाएगा ही नहीं। फिर भी ऐसा कहना पड़ता है कि, 'फल की आशा रखे बगैर तू काम कर।' इससे क्या होता है कि काम करते समय यह वाक्य चुभता है कि, 'भगवान ने तो फल की आशा रखे बगैर काम करने को कहा है।' इससे उसका फल अच्छा आता है। यदि फल की आशा रखे बिना काम करे तो लोग प्रगति करेंगे, लेकिन कृष्ण भगवान जो कहते हैं, उसे लोग समझे नहीं हैं। भगवान ने तो क्या कहा है कि, 'यदि तू सब्जी लेने जाए तो सब्जी की आशा रखना, लेकिन यदि सब्जी लेने के बाद कड़वी निकले तो जो भी ले लिया गया, वही फल है। उसमें फल की आशा मत रखना, अर्थात् राग-द्वेष मत करना। जो हुआ उसे स्वीकार कर लेना।' यदि जेब कट जाए तो शांति रखना, उस पर विलाप मत करना। वहाँ पर समता रखना, राग-द्वेष मत करना। यहाँ से साड़ी लेने गए, इसलिए साड़ी की आशा तो होती ही है, लेकिन फिर यदि साड़ी खराब निकले तो डिप्रेस मत होना। साड़ी भले ही कैसी भी निकले, जैसी निकली वह भले ही हो, वहाँ पर फल की आशा मत रखना, राग-द्वेष मत करना, ऐसा कहना चाहते हैं, बाकी चप्पल की आशा रखे बगैर मोची के वहाँ कौन जाएगा? मोची के वहाँ जाना, लेकिन अच्छा या बुरा, प्रिय या अप्रिय की आशा मत रखना। अर्थात् प्रिय या अप्रिय की आशा नहीं रखना, वही निष्काम कर्म है। भगवान ने गीता में कहा है कि, 'अभ्यास करना।' तो अभी गीता का इतना अधिक अभ्यास किया कि अभ्यास ही अध्यास हो गया। अध्यास छोड़ने के लिए भगवान ने अभ्यास करने को कहा, तो अभ्यास का ही अध्यास हो गया! कृष्ण के एक भी शब्द का अर्थ आज कोई जानता ही नहीं है। सभी क्रियाओं में 'मैं करता हूँ' ऐसा भान नहीं रहे, वह सन्यस्त योग है और वही सन्यासी कहलाता है ! ये आज के सन्यासियों में एक बूंद भी सन्यस्त
SR No.030014
Book TitleAptavani Shreni 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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